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________________ परिभ्रमण करते रहते हैं। 28 नक्षत्रों के आठ अवस्थित मंडल हैं, जिन पर वे ही नक्षत्र परिभ्रमण करते रहते हैं, दूसरे नक्षत्र दूसरे मंडल पर-इस प्रकार प्रत्येक नक्षत्र का मंडल निश्चित् है। नक्षत्र के आठ मंडल सूर्य-चन्द्र के समान ही 510 योजन क्षेत्र में है। चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र का प्रथम मंडल मेरु पर्वत से 44,820 योजन दूर है, ताराओं का प्रथम मंडल 1,121 योजन दूर है। चन्द्र, सूर्य और नक्षत्र का प्रथम व अंतिम मंडल समरेखा में ऊपर-नीचे है। अत: उनका व्यास, परिधि आदि समान है। (चित्र क्रमांक 66) काल गणना का आधार सूर्य और चन्द्र दोनों सूर्य मिलकर (प्रत्येक सूर्य अर्ध-अर्ध मंडल को पूर्ण करते हुए) 60 मुहूर्त (48 घंटे) में एक प्रदक्षिणा पूर्ण करते हैं। 30 मुहूर्त (24 घंटे) का एक अहोरात्र होता है। दोनों चन्द्र मिलकर 6223/221 मुहूर्त और नक्षत्र 59307/367 मुहूर्त में एक प्रदक्षिणा पूर्ण करते हैं। इस प्रदक्षिणा में सूर्य जिस क्षेत्र में प्रकाश करता है, वहाँ दिन और सूर्य प्रकाश के अभाव में वहाँ रात्रि कही जाती है। इस प्रकार मनुष्य के दृष्टिपथ की अपेक्षा से सूर्य का यह उदय अस्त का व्यवहार होता है। ____चन्द्र परिभ्रमण के आधार पर तिथि निर्मित होती है। चन्द्र-सूर्यादि के इस परिभ्रमण के आधार पर चन्द्र-सूर्यादि मास और संवत्सर आदि काल गणना होती है। चन्द्र-सूर्य अपने अनेक मंडलों में परिभ्रमण करते हैं। सूर्य जब मेरु पर्वत के प्रथम मंडल से अंतिम मंडल की ओर प्रयाण करता है, उसे दक्षिणायन और लवण समुद्र के अंतिम मंडल से प्रथम मंडल की ओर आता है, उसे उत्तरायण कहा जाता है। ग्रह, नक्षत्र और तारा एक मंडल से अन्य मंडल के ऊपर गमन नहीं करते, अतः उनमें उत्तरायण-दक्षिणायन का विभेद नहीं होता। ज्योतिष्क सम्बन्धी इस सामान्य ज्ञातव्य के पश्चात् अब हम उनका पृथक्-पृथक् वर्णन करेंगे। पृथ्वी के सबसे निकट तारा मंडल है, अत: सर्वप्रथम तारा ज्योतिष्क का वर्णन कर रहे हैं। तारा विमान व उसके देव - समभूतला पृथ्वी से 790 योजन से 900 योजन तक अर्थात् 110 योजन क्षेत्र में करोड़ा-करोड़ तारामंडल है। एक योजन के 3200 मील होते हैं, अत: 790 x 3200 = 25,28,000 मील दूर तारों के विमान हैं। ये सभी विमान आधे कोस प्रमाण लम्बे और उतने ही चौड़े हैं। ये पंचवर्णीय और अर्धकपित्थ के आकार के हैं। तारों के विमान में उत्पन्न सभी देवों की देह सात हाथ की होती है और स्थिति जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग एवं उत्कृष्ट पाव पल्योपम की है। तारा देवियों की स्थिति जघन्य पल्य का आठवाँ भाग उत्कृष्ट कुछ अधिक है। इन सबके मुकुट 'तारा' के चिह्न से युक्त होते है। तारा विमान को दो हजार देव उठाते हैं। O सचित्र जैन गणितानुयोग -105 105
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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