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________________ वेल /2 कोस ऊंची तमाला। लवण समुद्र घातकी खंड जलशिखा योजन वेल लावपासमद का वादका 16,000 योजन कुल ऊँचाई 17000 योजन - 200 योजन 16,000 यो. .. ऊँ. 700 योजन : -95,000 योजन ॐ. 700 योजन -95,000 योजन जंबूद्वीप गोतीर्थ भूमि 1,000 यो.→ गोतीर्थ भूमि 210,000 योजन - लवण समुद्र के अधिष्ठायक देव और उसका निवास-लवण समुद्र का अधिष्ठायक 'सुस्थित' नामक देव है। इसका आवास 'गौतम द्वीप' पर है जो जम्बूद्वीप की जगती से 12,000 योजन अंदर लवण समुद्र में है। मेरू पर्वत की अपेक्षा पश्चिम दिशावर्ती जयंतद्वार के सम्मुख स्थित हैं। यह 62 योजन 5 कलाँ ऊँचा तथा 31 योजन 25 कलां विस्तार वाला है। इसकी आयुष्य एक पल्योपम की है। यह देव लवण समुद्र में स्थित सभी पर्वत, द्वीप आदि का आभ्यंतर बाह्य लवण समुद्र अधिपति है। लवण समुद्र दृश्यमान समुद्र एवं लवण समुद्र-जैन शास्त्रों के अनुसार दृश्यमान सभी समुद्र चाहे वह हिंदमहासागर, हो या अरब सागर, अटलांटिक सागर, हो या पेसिफिक सागर-सभी लवण समद्र के ही भाग हैं। समुद्र का भूमितलब महापाताल कलश - चित्र क्र.56 क्योंकि लवण समुद्र भरतक्षेत्र की अपेक्षा दक्षिण गोतीर्थ-गाय आदि पशुओं के सरोवर में उतरने का मार्ग में है। और ये सभा समुद्र भा दक्षिण में ही है। जो तट पर से क्रमशः नीचे ढलावदार होता है। दूसरी बात, जैसे लवण समुद्र का पानी खारा माना गया है वैसे ही दृश्यमान सभी समुद्रों का पानी भी खारा है। इसके अतिरिक्त जैन शास्त्रों में वर्णित असंख्य समुद्रों में से केवल लवण समुद्र में ही ज्वार भाटा आता है, अन्य किसी भी समुद्र में नहीं। इसी प्रकार लवण समुद्र के अंश होने से पाँच खण्डों में दिखाई देने वाले उक्त सभी समुद्रों में भी ज्वार-भाटा आता है। इन सब प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि दृश्यमान सभी समुद्र लवण समुद्र के ही अंश हैं और इन्होंने ही पृथ्वी को पाँच भागों में बाँट दिया है। धातकी खण्ड दीप लवण समुद्र को चारों ओर से वेष्टित करके रहा हुआ चूड़ी के समान गोलाकार धातकीखण्ड द्वीप है। इसका चक्रवाल विष्कम्भ अर्थात् गोलाकार चौड़ाई 4,00,000 योजन है। यह द्वीप अंदर में 15 लाख 81 हजार 139 योजन की परिधि में और बाहर 41 लाख 10 हजार 961 योजन से कुछ न्यून परिधि वाला है। इस द्वीप में 'धातकी' (आंवला) के अनेक वन हैं और इस द्वीप का अधिष्ठायक भी धातकी वृक्ष पर निवास करता है। अत: इस क्षेत्र को धातकी खण्ड' नाम से पुकारा जाता है। इस द्वीप के दो अधिष्ठायक हैं-1. सुदर्शन देव व 2. प्रियदर्शन देव। सुदर्शन देव धातकी वृक्ष पर और प्रियदर्शन देव महाधातकी वृक्ष पर रहता है। ये दोनों वृक्ष शाश्वत है। समस्या 88 सचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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