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________________ धातकीखण्ड के मध्य में 500 योजन ऊँचे, 4 लाख योजन लम्बे और 1,000 योजन चौड़े पूर्व और पश्चिम द्वार से निकले दो इषुकार पर्वत हैं। 'इषु' अर्थात् 'बाण' बाणाकार दीर्घ और सीधे होने से ये दोनों पर्वत 'इषुकार' कहलाते हैं। इन दोनों पर्वतों के कारण धातकी खण्ड द्वीप दो भागों में विभाजित हो गया है(1) पूर्व धातकी खण्ड,(2) पश्चिम धातकी खण्ड। पूर्व में 'विजय' मेरू है और पश्चिम में अचल' मेरू है। प्रत्येक मेरू 85-85 हजार योजन ऊँचे हैं, 1,000 योजन गहरे और भूमि पर 9,400 योजन चौड़े है। ऊपर चलकर नन्दनवन में 9,250 योजन, सोमनस वन में 3,800 योजन तथा शिखर पर 1,000 योजन चौड़े हैं। समभूमि पर स्थित 'भद्रशाल वन' से 500 योजन ऊपर नन्दनवन' है और वहाँ से 55,500 योजन ऊपर 'सोमनस वन' है और इससे भी 28,000 योजन ऊपर 'पाण्डुक वन' है। जम्बूद्वीप और धातकीखण्ड के मेरू पर्वत में अंतर 1. मेरू पर्वत से समभूमि तक 1,000 योजन ऊँचा मेरू पर्वत मूल से समभूमि तक 1,000 योजन ऊँचा 2. समभूमि से नंदनवन 500 योजन समभूमि से नंदनवन तक 500 योजन 3. नंदनवन से सोमनस वन 62,500 योजन नंदनवन से सोमनस वन तक 55,000 योजन 4. सोमनस वन से पंडकवन 36,000 योजन सोमनस से पंडकवन तक 28,000 योजन कुल-1,00,000 योजन कुल - 85,000 योजन विस्तार में जम्बूद्वीप के मेरूपर्वत का 11 योजन पर 1 योजन विस्तार (चौड़ाई) घटता है और | धातकीखण्ड के मेरूपर्वत का 10 योजन पर 1 योजन घटता है। धातकीखण्ड के प्रत्येक विभाग में क्षेत्र, पर्वत, द्रह नदी, जगती और चार द्वार आदि सभी पदार्थ जम्बूद्वीप के अनुसार ही है, लेकिन प्रत्येक पर्वत की लम्बाई 4 लाख योजन और चौड़ाई जम्बूद्वीप के वर्षधर पर्वतों से दुगुनी है। ऊँचाई जम्बूद्वीप के पर्वतों के समान ही है। गहराई 12 वर्षधर पर्वतों की ऊँचाई से 1/4 भाग है। वर्षधर पर्वत सभी चक्र के आरे के समान है और वर्षक्षेत्र दो आरों के मध्य के अंतर के समान है। अर्थात् पर्वतसम हैं और क्षेत्र विषम है। ये सभी पदार्थ शाश्वत हैं। सभी क्षेत्र लवण समुद्र की ओर संकीर्ण और कालोदधि की ओर विस्तृत हैं। धातकीखंड के महाविदेह में जो अंतरनदी, पर्वत और वनमुख हैं, इन तीनों का विस्तार मात्र जम्बूद्वीप से दुगुना है। जगती तो सब जगह की 12 योजन की ही होती हैं। शेष सारा विस्तार विजय की लम्बाई में आ जाता है। इसी प्रकार मेरू पर्वत का माप भी शाश्वत है, इस कारण शेष लम्बाई भद्रशाल वन में गिनी जाती है। पूर्व धातकीखंड में 68 विजय हैं। 34 विजय पूर्वार्ध और 34 विजय पश्चिमार्ध में है। पूर्वार्ध धातकीखंड महाविदेह की 8, 25, 9 और 24वीं विजय में क्रमशः सुजात स्वामी, स्वयंप्रभ स्वामी, ऋषभानन स्वामी और अनन्तवीर्य स्वामी-ये चार विहरमान हैं तथा पश्चिम धातकीखंड की 8,25,9 और 24वीं विजय में क्रमश: सूरप्रभ स्वामी, विशालधर स्वामी, वज्रधर स्वामी और चन्द्रानन स्वामी-ये चार विहरमान हैं। इस प्रकार धातकीखंड में कुल आठ विहरमान हैं। धातकीखंड में 12 चन्द्र और 12 सूर्य हैं। उसमें 6 चन्द्र और 6 सूर्य धातकीखंड की एक दिशा में पंक्तिबद्ध हैं और 6 चन्द्र, 6 सूर्य उसके सामने की दिशा में पंक्तिबद्ध हैं। सब सूर्य-चन्द्र के परिवार में कुल 336 नक्षत्र, 1056 ग्रह और 8,03,700 कोटाकोटी तारे हैं। (चित्र क्रमांक 57) सचित्र जैन गणितानुयोग 89 7
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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