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________________ ऊपर उछलती लहरें यूपक वडवामुख आभ्यंतर लवण समुद्र लघु पाताल कलश केयूप लघु पाताल कलश महापाताल कलश जलवृद्धि (भरती व ओट) लघु पाताल कलश व जल शिखा (त्रिपार्श्व दर्शन) पाताल कलशों के नीचे के त्रिभाग की वायु जब क्षुभित होती है, तब वह ऊपर से पानी को ऊर्ध्वमुखी बनाती है। परिणामस्वरूप 16,000 योजन की ऊँचाई वाला दगमाला (जलशिखा) का पानी दो कोस (आधा योजन) अधिक ऊँचा हो जाता है। जलशिखा में जलवृद्धि होने से सम्पूर्ण समुद्र में तरंगें-लहरें उत्पन्न होती हैं, चारों और पानी में खलबलाहट मच जाती है। उसी को 'जलवृद्धि' या 'भरती' कहते हैं। जब पाताल कलशों की वायु शांत हो जाती है, तब पानी भी अपनी मूल स्थिति चित्र क्र.55 में आ जाता है। उसी को समुद्र की ओट' कहते हैं। ___जलवृद्धि का समय-प्रायः दिन में दो बार जलशिखा में 'भरती' और 'ओट' अर्थात् वधघट होती है। इसी प्रकार अष्टमी, चौदस, पूनम तथा अमावस्या के दिन भी इसी प्रकार भरती और ओट आती है। असंख्य द्वीप-समुद्रों में से एक लवण समुद्र में ही भरती और ओट आती है। अन्य समुद्रों के जल एक समान रहते हैं। जलवृद्धि रोकने वाले वेलंधर देव-लवण समुद्र की जलशिखा का पानी जब पाताल कलशों की वायु के क्षुभित होने पर तीव्र वेग से ऊपर उछलता है, तब वह पानी जम्बूद्वीप और धातकीखण्ड द्वीप की जगती की ओर बहने लगता है। उस जलवृद्धि को वेलंधर जाति के नागकुमार देव बड़े-बड़े कड़छों से रोकते हैं। उसमें जम्बूद्वीप की ओर भित्तिरूप आभ्यन्तर वेला को 42,000 देव, धातकी खण्ड तरफ की बाह्य वेला को 72,000 देव और जलशिखा के ऊपर के भाग का अग्रोदक वेला को 60,000 देव-इस प्रकार कुल 1,74,000 वेलंधर जाति के नागकुमार देव वेला के पानी को रोकने का कार्य करते हैं। परिणामतः वह जल जम्बूद्वीप में या धातकी खण्ड द्वीप में नहीं आ पाता। जंबूद्वीप और धातकीखंड के तीर्थंकर आदि उत्तम पुरूषों के प्रभाव से भी ये दोनों द्वीप जलमग्न नहीं होते। 'वेल' अर्थात् समुद्र की बढ़ती जलधारा को 'धर' अर्थात् धारण करने वाले 'वेलन्धर देव' कहलाते हैं, इनका अनुसरण करने वाले देवों को अनुवेलन्धर देव कहा जाता है। (चित्र क्रमांक 56) इनके आवास लवण समुद्र में 42 हजार योजन आगे जाने पर पूर्व दिशा में 'गोस्तूप' दक्षिण दिशा में 'शिवका' पश्चिम में 'शंख' तथा उत्तर में 'मनःशिलाक' नामक पर्वत पर है। सभी वेलन्धर देवों की आयु एक पल्योपम की है। ये सभी भवनपतिनिकाय के नागकुमार जाति के देव हैं। अनुवेलंधर देवों के निवास लवण समुद्र में चारों विदिशाओं में हैं। सचित्र जैन गणितानुयोग 87
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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