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________________ 33.3335यो. वायु 33,333,5यो. पानी 33,333.5यो, वायु to TOD 10,000 यो. चार महापाताल कलश-लवण समुद्र में महापाताल कलश जम्बूद्वीप और धातकीखंड द्वीप के दोनो किनारों से 10,000, योजन 95-95 हजार योजन अंदर जाने पर बीच का जो दस हजार योजन का समतल भाग है इसी में महापाताल पानी कलश हैं। ये महापाताल कलश घड़े के आकार के हैं तथा चारों दिशाओं में चार हैं- पूर्व दिशा के तल में 'वलयामुख', दक्षिण दिशा में 'केयूप', पश्चिम दिशा में 'यूपक' एवं उत्तर दिशा में 'ईश्वर' नामक महाकलश है। कलशों के नीचे का तलभाग 10,000 योजन है। मुख भाग 10,000 योजन चौड़ा है एवं मध्य में ये महाकलश 1,00,000 योजन विस्तार वाले और इतनी ही गहराई वाले हैं। महापाताल कलश के तीन विभाग हैं। ये तीनों ही विभाग 33,3331/3 योजन चित्र क्र.54 प्रमाण विस्तृत हैं। इनके नीचे के त्रिभाग अर्थात् '/3 भाग में वायु भरी हुई है। दूसरे '/3 भाग अर्थात् मध्य में जल और वायु भरा हुआ है एवं ऊपर के 1/3 भाग में मात्र जल भरा हुआ है। इन चार पाताल कलशों में पल्योपम की स्थिति वाले चार महर्द्धिक देव रहते हैं-(1) काल, (2) महाकाल, (3) वेलंब और (4) प्रभंजन। लघुपाताल कलश-इन चारों ही महापाताल कलशों के बीच के चार अंतरों में क्रमश: 1,971-1,971 ऐसे कुल मिलाकर 7,884 लघु पाताल कलशों की नौ-नौ पंक्तियाँ हैं। लघुकलशों की चौड़ाई नीचे मूल भाग में तथा ऊपर मुख भाग में 100 योजन, मध्य भाग में 1,000 योजन है तथा इनकी गहराई 1,000 योजन है। इनकी ठीकरी की मोटाई सर्वत्र एक जैसी 10 योजन की है। __जम्बूद्वीप की ओर प्रथम पंक्ति में 215 लघु कलश हैं। इसके बाद समुद्र की परिधि बढ़ने से आगे-आगे की प्रत्येक पंक्ति में एक-एक कलश की वृद्धि होती है। अत: दूसरी पंक्ति में 216, तीसरी पंक्ति में 217- इस प्रकार नवमी पंक्ति में 223 लघुपाताल कलश हैं। इस प्रकार नौ पंक्ति में कुल मिलाकर 1,971 लघु कलश हैं। ऐसे चार आंतरों के मिलाकर 7,884 लघु पाताल कलश हैं। इन सब लघु कलशों के नीचे भी 1/3 भाग (3331/3) में वायु, मध्य के 1/3 भाग में वायु और जल तथा ऊपर के 1/3 भाग में जल है। इन सभी महाकलश व लघुकलशों का मुख लवण समुद्र के समतल भूमि भाग पर समश्रेणी में है और कलश समुद्र के भूमि तल से लगे हुए हैं। (चित्र क्रमांक 54-55) जलशिखा-जम्बूद्वीप और धातकीखण्ड द्वीप के दोनों किनारों से 95,000-95,000 योजन छोड़कर मध्य के 10,000 योजन का पानी स्वभावत: ही सदा 16,000 योजन की ऊँचाई पर ही स्थित रहता है। दीवार की तरह स्थित लवण समुद्र के इस पानी को जलशिखा या दगमाला कहते हैं। इसके कारण लवण समुद्र के दो भाग हो जाते हैं। दगमाला से जम्बूद्वीप की तरफ का भाग आभ्यन्तर लवण समुद्र और धातकीखण्ड की ओर का भाग बाह्य लवण समुद्र कहा जाता है। 86 AAAAAAAसचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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