________________ अध्याय 11 वृद्धि का अभिलेखक वद्धि की घटना द्वारा हमें स्वतः-क्रिया का एक दूसरा दृष्टान्त मिलता है। क्या इसमें और अन्य प्रकार की स्वतः-क्रिया में कुछ समानता हो सकती है ? क्या वाह्य अवस्थाओं की विभिन्नता द्वारा इसी प्रकार से सब स्वतः क्रियाशीलताएँ रूपान्तरित की जा सकती है ? बाह्य परिवर्तन में वृद्धि और उसके रूपान्तरणों का प्रश्न एक अत्यधिक व्यावहारिक महत्त्व का विषय है, कारण, संसार के खाद्य की संपूर्ति (Supply of food) वनस्पति की वृद्धि पर निर्भर है। इसलिए वृद्धि की अनुकूल अवस्थाओं का पता लगाना बहुत ही आवश्यक है / किस प्रकार बाह्य कारक इसमें रूपान्तरण करते हैं ? वृद्धि का माप अन्वेषण की सबसे मूलभूत कठिनाई है-वृद्धि-गति का असाधारण मन्द होना / मन्थर-गति के लिए बदनाम बेचारा घोंघा भी बढ़ते हुए अंकुर से दो हजार गुनी तेजी से चलता है। वृद्धि की औसत गति इंच का प्रति सेकेंड है। यह लम्बाई सोडियम की एक प्रकाश-तरंग की आधी है। - अब तक जिस आवर्धक वृद्धि-अभिलेखक का उपयोग किया गया है, उससे भी इसकी प्रगति को देखने और नापने में विलम्ब होता है। वृद्धि पर किसी विशेष साधन के प्रभाव का यथार्थ अन्वेषण करने के लिए. प्रकाश और ताप की तरह परिवर्ती दशाओं को संपरीक्षण के पूरे समय तक पूर्णतः स्थिर रखना आवश्यक है। हम एक बार में * केवल कुछ मिनटों के ही लिए इन अवस्थाओं को पूर्णतः स्थिर रख सकते हैं / जिन संपरीक्षणों को पूर्ण करने में कई घंटे लगते हैं, उनमें गम्भीर भूलें हो सकती हैं जिससे उनके परिणाम निष्फल हो जाते हैं। केवल वही रीति सन्तोषजनक हो सकती है जो संपरीक्षण के समय को घटाकर केवल कुछ मिनटों का कर दे। अत: यह आवश्यक हो जाता है कि एक अत्यधिक सूक्ष्म आवर्धक यन्त्र बनाया जाय जो वृद्धि की आवधित गति का स्वतः अभिलेख