________________ स्वचलता 77 होती हैं। पहले में उत्प्लाव कम संचय द्वारा ही प्रेरित हो जाता है। इनमें बहुविध क्रियाशीलता का असाधारण प्रदर्शन शीघ्र समाप्त हो जाता है। लयबद्ध अवस्था को बनाये रखने के लिए सतत बाह्य उददीपना की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के पौधे बाह्य प्रभावों पर अत्यधिक निर्भर रहते हैं और जब ऐसी उद्दीपनाओं के आधार हटा दिये जाते हैं तब वे शीघ्र ही चुपचाप समाप्त हो जाते हैं / इसका एक उदाहरण पंक्तिपत्र (Biophytum) है। दूसरे प्रकार की वनस्पतियों की स्वतः क्रिया में उल्पाव के आरम्भ के लिए लम्बे सतत संचय की आवश्यकता होती है। किन्तु पौधे के किसी तात्कालिक उद्दीपना से वंचित हो जाने पर भी इसमें स्वतः क्रिया का सहसा-उद्वेग स्थायी होता है और देर तक रहता है। इस प्रकार ये अन्य वनस्पतियों की भाँति स्पष्टतः संसार की बाहरी चमक-दमक पर इतना निर्भर नहीं हैं। शालपर्णी इसका एक उदाहरण है। जिसे साहित्यिक और कलाकार प्रेरणा कहते हैं, क्या यहाँ हमें उसी तरह की कोई चीज नहीं मिलती? इस ऊँचे स्तर तक पहुँचने और बाद के प्रबुदबुद उत्प्लाव (Effervescent overflow) के लिए पूर्वसंचय की भी आवश्यकता होती है। प्रेरणा अन्ततः देखने में बिना किसी प्रयास के उपलब्ध होने वाली जीवन की पूर्णता और उत्प्लाव का उदाहरण ही तो है / यदि ऐसा ही है तो इस अवस्था तक पहुँचने के लिए यह निश्चय करना पड़ेगा कि किसका अनुगमन किया जाय ; पंक्तिपत्र का, जो तात्कालिक बाह्य उद्दीपना पर निर्भर रहता है और जिसकी क्रियाशीलता क्षणिक होती है, या शालपर्णी (Desmodium) का, जिसकी विशेषता है शक्ति को धैर्यपूर्वक लम्बे समय तक संचित किये रहना जो बाद में अनवरत और आग्रही अनुक्रिया के रूप में अभिव्यक्त होती है। इस प्रकार वनस्पति और प्राणी दोनों में सतत अनुक्रिया पायी जाती है, पहले मन्द अथवा सामान्य फिर बहुल और तब स्वतः। क्षीण या सामान्य उद्दीपना का फ़ल होता है केवल एक अनुक्रिया, उद्दीपना चाहे यान्त्रिक हो या शारीरिक / इसके विपरीत तीव्र उद्दीपना द्वारा अनुक्रिया विविध प्रकार से बहुल होती है। पर्यावरण की विभिन्न उद्दीपना से प्राप्त जो अधिक शक्ति है, वही जैसे छलक पड़ती है और स्वतः लयबद्ध अनुक्रिया का स्वरूप ग्रहण कर लेती है। यह विविध रूप से . ध्यक्त होती है। कभी शालपर्णी की पत्तियों के स्पन्दन में, कभी हृदय की धड़कन में 'भौर कभी किसी दूसरी जगह अनुगुंजित संवेदना और विचार में।