________________ वनस्पतियों के स्वलेख प्रचुर शक्ति का सूचक है। यह बड़े बालकों में भी देखा जाता है। अत्यधिक प्रसन्नता से उत्तेजित होकर वे नाचने लगते हैं। यह लयबद्ध क्रिया का उत्कृष्ट स्वरूप है। इसके अतिरिक्त टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं की लम्बी शृंखलाएँ जो कतिपय हस्ताक्षरों की लक्षण है, प्रायः ध्यान आकर्षित करती हैं। यह बहुल लयबद्ध प्रतिक्रिया आत्माभिमान के आधिक्य की अभिव्यक्ति है, इसमें सन्देह नहीं। .. लयबद्ध संवेदना यह बहुल अनुक्रिया न केवल अपेक्षाकृत स्थूल यान्त्रिक गतियों का लक्षण है बल्कि संवेदना के बहुत ही सूक्ष्म क्षेत्र के लिए भी उतना ही सत्य है। .. एक क्षण के लिए हम आँख की पुतली पर प्रकाश की तीक्ष्ण उददीपना के प्रभाव का विचार करें। हम बिजली के बल्ब की उत्तापदीप्त अंशु (Incandescent filament) को एक क्षण के लिए स्थिर दृष्टि से देखें फिर आखें बन्द कर लें। उद्दीपना के समाप्त होने पर भी प्रकाश का अनुप्रभाव तीक्ष्ण दृश्य प्रभावों की शृंखला बनकर स्थिर रहता है और काफी देर तक उज्ज्वल अंशु प्रकट और लुप्त होती रहती हैं। सारांश यह है कि प्रकाश की तीव्र उद्दीपना बहुल अनुक्रियात्मक संवेदना का कारण है। इसी तरह सब प्रकार की मानसिक उद्दीपनाओं के विषय में भी यही सत्य है। ये जब अत्यधिक तीव्र हो जाती हैं तब इनकी पुनरावृत्ति होती रहती है और ये आग्रही (Persistent) एवं स्थायी जैसी हो जाती हैं। इनकी पुनरावृत्ति से बचाव की बात सोचना व्यर्थ है। हमारे विचार हमेशा हमारा पीछा करते रहते हैं, और तो और हमारे स्वप्नों में भी वे लौटकर आते रहते हैं। अन्य जीवित पदार्थों की तरह ही चेता-ऊतक भी उस पर जो आघात करने वाली उद्दीपना द्वारा ही और अधिक अनुक्रियाशील बनाया जाता है। पुनरावर्ती उद्दीपनाओं के संचयी प्रभाव स्वरूप चेता पदार्थ की गति अन्ततः उसी प्रकार स्वतः प्रेरित हो जाती है। जैसा कि विचार के. प्रादुर्भाव से लेकर प्रेरणा तक की अनेक क्रियाओं में देखा जाता है। - क्षणिक और आग्रही स्वतः प्रवृत्ति (Transient & Persistent Spontancity) बाह्य उददीपना के समाप्त हो जाने पर स्पन्दन-क्रिया का जारी रहना संचयशक्ति पर निर्भर है। इस विषय में मैंने पाया है कि वनस्पति दो विशिष्ट प्रकार की