________________ स्वचलता यह गति स्वतः होती है। इन स्वतः गतियों की भीतरी उद्दीपना सच पूछिये तो बाह्य उद्दीपना ही है जो उसके अन्दर रुद्ध हो गयी है। हम सुविधा के लिए वनस्पति को दो वर्गों में बाँट सकते हैं--साधारण और स्वचालित। प्रकृत स्थिति में पंक्तिपत्र पहले वर्ग में आता है, कारण, यह एक मन्द उद्दीपना को एक ही अनुक्रिया प्रदर्शित करता है, किन्तु तीव्र उद्दीपना की बहुल अनुक्रियाएँ प्रदान करता है। ये अनुक्रियाएँ स्पष्ट ही स्वतः होती हैं। इस प्रकार साधारण और स्वचालित वनस्पतियों के बीच एक सातत्य रहता है। अब हम यह देखें कि क्या एक स्पष्ट रूप से स्वचालित पौधा किसी साधारण पौधे की स्थिति तक लाया जा सकता है; और क्या वह अधिक संचित शक्ति ही शालपर्णी ( Desmodiun) को स्वत: गति प्रदर्शन में सहायता देती है ? मैंने एक शाल चित्र ४६-डेस्मोडियम में संचित ऊर्जा के क्षय के पश्चात् स्पन्दन का क्रमिक स्थगन / पर्णी के पौधे को लेकर उसे उसके पर्यावरण की उद्दीपक शक्तियों से छिपा दिया। इसकी सचित शक्ति के ह्रास ने इसके स्पन्दन को शीघ्र ही बन्द कर दिया (चित्र 46) / फिर नयी उददीपना के प्रवेश न स्पन्दन को पुनरुज्जीवित कर दिया। मन्द उददीपना द्वारा एक ही अनुक्रिया हुई तथा तीव्रतर उददीपना का फल हुआ बहुल अनुक्रियाएँ / जब इसे पर्यावरण को प्रकृत उद्दीपना में पुनः रखा गया तब इसकी स्वतः क्रियता लौट आयी। इसलिए प्रत्यक्ष है कि सचित शक्ति ही देखने में स्वतः स्फूर्त लगने वाली क्रिया के रूप में छलक पड़ती है। यह तथ्य, उन विविध क्रियाओं पर, जो अभी तक अकारण या अयुक्तिक समझी जाती थीं, प्रकाश डालता है। एक स्वस्थ शिशु भोजन के बाद सोकर जागने पर अपने हाथ-पैर लयबद्ध गति में फेंकने लगता है; यह उसकी