________________ जीवन और मृत्यु की वक्र रेखा मृत्यु-अभिलेखक मैं एक मृत्यु-अभिलेखक बनाने में सफल हुआ हूँ। यह मरते हुए जीव का सतत लेख लेकर उसकी मृत्यु के यथार्थ बिन्दु का अभिलेख ले लेता है। यह अभिलेखक यन्त्र घूमने वाला होता है। धूमित काँच पट्ट विद्युत्-चुम्बक युक्ति द्वारा प्रदोलित किया जाता है और इस प्रकार ऊपर उठते हुए तापमान की प्रत्येक मात्रा पर बिन्दुओं की श्रृंखला बनती जाती है। मृत्यु-अभिलेख के लिए हम लाजवन्ती का एक नमूना लेते हैं। इसी प्रकार कोई भी दूसरा पौधा सफलतापूर्वक काम में लाया जा सकता है। इस लाजवन्ती को हम जल में रखकर धीरे-धीरे तापमान बढ़ाते हैं। इस अभिलेख में ऊपर उठती हुई जो फैलनेवाली गति है, वह नीचे की ओर जाने वाली रेखा द्वारा और सिकुड़ती हुई नीचे की गति ऊपर जाती हई रेखा द्वारा विदित होती है। यह प्रयोग २५°सें पर किया गया। जल की बढ़ती हुई उष्णता का ठीक वही परिणाम हुआ जैसा हमारे शरीर पर होता है / वह थी बढ़ती हुई शिथिलता (रिलैक्शेसन) और यह रेखा नीचे की ओर तब तक चलती गयी, जब तक तापमान करीब-करीब 60deg सें० तक न पहुँच गया। तब कुछ क्षण के लिए गति बन्द हो गयी। फिर अकस्मात् मृत्यु-अंगसंकोच घटित हुआ और अभिलेख उत्तोलक आक्षेपी (कनवल्सिव) शक्ति द्वारा फेंक दिया गया (चित्र 36) / अवलोकन करिये,अपवर्ताक कितना तीक्ष्ण है। यह पूरा अभिलेख इस प्रकार चित्र ३९-लाजवन्ती के जीवन और मत्यु जीवन और मत्यु की रेखा है। यदि का वक्र। वन के निम्न या विस्तृत भाग अपवर्ताक के पहले ही वनस्पति को ठंडा में क्रमिक बिन्दु तापमान के 1deg सें तक कर दिया जाय तो वह बच सकती है, बढ़ने का निरूपण करते हैं। अंगकिन्तु एक बार उस बिन्दु तक पहुँचने आकुचन द्वारा 60deg सें० पर वन का पर फिर चेतना नहीं लौट सकती। अपवर्तन। इसी तीव्र मोड़ के बिन्दु पर जीवन और मृत्यु के संघर्ष का अन्त होता है। 60