________________ कार्बनिक पदार्थों को अनुक्रिया जीवित और निर्जीव के ये दोनों अभिलेख-समूह क्या हमें यह नहीं बताते कि इन दोनों में ही कुछ पदार्थ समान और सतत हैं ? क्या हमें यह नहीं बताते कि निर्जीव और जीवित दोनों ही में उद्दीपना द्वारा परमाणविक (Molecular) परिवर्तन होता है ? दैहिक और भौतिक में निकट सम्बन्ध होता है ? यह अकस्मात् समाप्त नहीं होता, बल्कि एक समरूप नियम चलता रहता है ? पृथ्वी और धूलि, वनस्पति और जीव सबके सब संवेदनशील हैं / इस प्रकार_ ब्रह्माण्ड-सम्बन्धी विस्तृत धारणा को लेकर यह देखा जा सकता है कि लक्ष-लक्ष आकाशीय पिण्ड जो अन्तरिक्ष में विचरण करते हैं, वे भी बहुत कुछ जीवरचना के समान हैं और इनका एक निश्चित विगत इतिहास है और भविष्य में उद्विकासी प्रगति भी। तब हम सम्भवतः यह भी विश्वास करने लगेंगे कि ये किसी प्रकार भी मृत्यु के शिकंजे में कसे हुए निर्जीव मिट्टी के लोंदे नहीं हैं, बल्कि सक्रिय जीवरचना हैं "जिनका निःश्वास, सम्भवतः प्रोज्ज्वल लौह वाष्प है, जिनका रक्त है तरल धातु और जिनका भोजन है उल्कापिण्डों का प्रवाह / " अब हम नवीन उत्साह से उन रहस्यों का अनुसन्धान करेंगे, जो एल लम्बे युग तक हम से छिपे रहे हैं। विज्ञान का प्रत्येक पग, उस सबको जो असंगत और चंचल दिखता है, एक नयी और समरस सरलता में समाहित करके बना है / विज्ञान प्रत्यक्ष भिन्नता में निहित एकरूपता के और स्पष्ट दर्शन की ओर ही सदैव बढ़ा है। जब मैंने इन स्वलिखित अभिलेखों के मूक साक्षियों को खोज निकाला और सर्वव्यापी एकरूपता की वह स्थिति पायी जिसके अन्दर सब कोई समाये हुए हैंप्रकाश की उमियों में कम्पित होता हआ रजकण, पृथ्वी पर का अनन्त जीवन, और तेजोमय सूर्य जो हमारे ऊपर प्रकाशमान है-तभी मैंने गंगा के किनारे तीन हजार वर्ष पूर्व उद्घोषित पूर्वजों के संदेश को सर्वप्रथम कुछ समझा "विश्व की इस परिवर्तनशील अनेकता में जो एकरूपता देखते हैं, शाश्वत सत्य उन्हीं का है, वे ही अमर सत्य को जान सकते हैं और कोई नहीं, और कोई नही।" .