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________________ कार्बनिक पदार्थों की अनुक्रिया (Platinum) जैसी धातुएँ इसलिए चुनी गयीं क्योंकि वे अधिक संवाही होने के कारण बढ़ी हुई विद्युत् अनुक्रिया प्रस्तुत करती हैं। जब तक धातु आराम से यो, काई भो विद्युत् उद्दीपना का चिह्न नहीं मिला। किन्तु जब भी इसे किसी प्रकार की उद्दीपना मिली, एक निश्चित अनुक्रिया हुई। मन्द उदीपना से अनुक्रिया भी मन्द हुई और उत्तेजना की अवस्था भी शीघ्र समाप्त हो गयी / अधिक शक्तिशाली उद्दीपना द्वारा अनुक्रिया भी अधिक शक्तिशाली हुई और उसके स्वस्थ होने में मो अधिक समय लगा। मन्द उद्दीपना एक बार में निष्फल रही किन्तु निरन्तर करने पर उसका प्रभाव पड़ा। ये सब प्रतिफल सर्वथा नाड़ी (Nerve) और पेशियों की लाक्षणिक अनुक्रियाओं के सदृश हैं। समान उद्दीपना द्वारा समान अनुक्रिया हुई। बीच-बीच में पूर्ण प्रकृतिस्थ होने के लिए उचित समय दिया जाता रहा। किन्तु जब धातु को लम्बे समय के लिए सतत रूप से उद्दीप्त किया गया, तब श्रान्ति का आभास मिला (चित्र 36) / ___ अब प्रतिक्रिया की वृद्धि पर उद्दीपकों के प्रभाव का वर्णन किया जायगा। धातु पर सतत समान उद्दीपना की सामान्य अनुक्रिया को प्राप्त करने के बाद उसे सोडियमकार्बोनेट के घोल से, जो एक उद्दीपनाकारक अभिकर्ता है, धुलाया जाता है। इससे अनुक्रिया अत्यधिक बढ़ जाती है (चित्र 37) / अन्य उद्दीपक भी हैं जिनसे संवेदनशीलता में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। इस प्रकार, जैसा इस अध्याय में और साथ ही पिछले अध्यायों में बताया गया है, जब प्राणी, वनस्पति और धातु, तीनों को समान प्राश्निक चित्र ३७--धातु की वैद्युत अनुक्रिया को बढ़ाने में आघात दिये जाते हैं तब सबके उद्दीपना की क्रिया। सब समान उत्तर देते हैं / उद्दीपना द्वारा वे समान अनुक्रिया प्रदशित करते हैं और उनकी श्रान्ति भी समान होती है। यदि प्रतिक्रिया की समानता का और अधिक प्रमाण चाहिये, तब केवल एक अन्तिम प्रमाण रह गया है जिसके द्वारा शरीर विज्ञानविद् (Physiologists) जीवन की लाक्षणिक घटनाओं में विभेद करते हैं / जो जीवित है, 1177
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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