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________________ वनस्पतियों के स्वलेख तीस वर्ष से अधिक समय हुआ, जब अपने विद्युत्तरंगों के परिचायक(Detector) कुछ अप्रत्याशित लक्षणों को देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गया था। उदाहरणार्थ, मैंने देखा कि आते हुए संवाद की सतत उद्दीपना के कारण धात्विक परिचायक की संवेदनशीलता लुप्त हो गयी। किन्तु जब उसे आराम का यथेष्ट समय दिया गया तब वह फिर से संवेदनशील हो गया। क्रमागत (Successive) अनुक्रियाओं का अभिलेख लेकर मैंने साश्चर्य देखा कि वह जीव-पेशियों द्वारा प्रदर्शित विश्रान्ति जैसा था और जिस प्रकार जीव-ऊतक थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर से सक्रिय हो जाता है उसी प्रकार आराम के बाद अकार्बनिक प्रापक (Inorganic receiver) भी सक्रिय हो जाता है। यह सोचकर कि लम्बे आराम से मेरा प्रापक अधिक संवेदनशील हो जायगा, मैंने उसे कुछ दिनों के लिए एक ओर रख दिया और मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वह पूर्ण रूप से निष्क्रिय हो गया था / सच तो यह है कि उद्दीपना के अभाव में वह आलसी हो गया था। एक शक्तिशाली आघात पाकर वह पुनः अनुक्रिया के लिए तत्पर हो गया। इस घटना द्वारा अधिक कार्य से श्रान्ति और लम्बी अकर्मण्यता से निष्क्रियता के दो विपरीत उपचारों की आवश्यकता का संकेत मिलता है। चित्र ३६--धातुओं की थकावट / यही नहीं, मैंने यह भी देखा कि किसी निश्चित उद्दीपक भेषज ने मेरे प्रापक को अत्यधिक संवेदनशील बना दिया, जिससे वह अत्यधिक हल के बेतार संदेशों का भी अभिलेख करने लगा, जिनका वह पहले पता नहीं लगा पाता था। दूसरे भेषज संवेदनशीलता कम कर देते थे, या उसे समाप्त ही कर देते थे। ____जीवित ऊतकों की अनु क्रिया-शक्ति की याद दिलाने वाली इस प्रतिक्रि या का आभास पान के बाद मैंने धात्विक तन्तुओं पर संपरीक्षण किया। इस अनुसन्धान में विद्युत् अनुक्रिया की वही विधि अपनायी गयी जो साधारणतया जीव-ऊतकों के अनुसन्धान में अपनायी जाती है। अब मैं अकार्बनिक पदार्थों से, उदाहरणार्थ, धातुओं से पाये गये महत्त्वपूर्ण प्रतिफलों का वर्णन करूँगा। टीन, तांबा और रासायनिक रूप से निष्क्रिय प्लैटिनम
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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