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________________ भूमिका प्रस्तुत पुस्तक में 'बोस संस्थान' में किये गये अनुसन्धानों का एक सुसम्बद्ध और जनसुलभ विवरण प्रस्तुत किया गया है। जैसा कि परिशिष्ट में स्पष्ट है, इसका ध्येय ज्ञान की वृद्धि को यथासम्भव सर्वसाधारण में अधिकाधिक प्रसारित करना है। 'भौतिकी' (Physics) और शरीर-विज्ञान (Physiology) के सीमा-प्रदेश में अन्वेषण करते हुए, 'सजीव' और 'निर्जीव' प्रदेश के बीच की सीमा-रेखाओं को लुप्त होते और उनके बीच संस्पर्श-बिन्दुओं को उभरते देखकर मैं विस्मित हो गया। धातुएँ उत्तेजना से प्रतिचारित होती हैं, उन्हें थकावट होती है, वे कुछ औषधियों द्वारा उत्तेजित होती हैं और विष द्वारा नष्ट हो जाती हैं। अजैव (Inorganic) पदार्थों और प्राणि-जीवन के बीच वनस्पतियों के मूक जीवन का एक बृहत् विस्तार है। अन्वेषण-कर्ताओं को पग-पग पर जो कठिनाई होती है, उसका कारण है जीवन-क्रिया की अन्योन्य प्रतिक्रिया, जो वृक्ष के अन्तःस्थ प्रकाशहीन निम्न तलों में होती है और जो हमारी दृष्टि से परे है / उसके जीवन के जटिल विन्यास को स्पष्ट करने के लिए जीवन की लघुतम इकाई 'जीवन-अणु' तक पहुंचना और उसके जीवन-स्पन्दनों का अभिलेखन करना आवश्यक है। अणुवीक्षण यन्त्रं की दृष्टि जिस सीमा पर जाकर रुक जाती है, उसके बाद भी अदृश्य के क्षेत्र में अनुसन्धान करना शेष रह जाता है। __मैंने मूक वनस्पति द्वारा उसकी आत्मकथा लिखवाकर उसे अपने गुप्त जीवन और अनुभवों का सबसे अधिक प्रभावकारी वृत्त-लेख बनाने में सफलता पायी है। इस प्रकार के स्वरचित अभिलेख यह सिद्ध करते हैं कि उच्चतम प्राणी में भी ऐसी कोई जीवन-प्रतिक्रिया नहीं है जिसका वनस्पति-जीवन में पूर्वाभास न हो।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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