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________________ अध्याय 7 फरीदपुर का प्रार्थनारत ताड़ वृक्ष मानों इस असंयत जीवन-पद्धति का विरोध करने के लिए ही कुछ पेड़ बहुत धार्मिक दिखने वाला जीवन अपना लेते हैं। कम-से-कम, प्रार्थना करने वाले ताड़ वृक्ष के विचित्र क्रिया-कलाप का भोली-भाली जनता पर तो ऐसा ही प्रभाव पड़ा। संध्या को जिस समय प्रार्थना के लिए मन्दिरों के घंटे सभी का आवाहन करने के लिए बजने लगते थे, यह पेड़ प्रार्थना में नत हो जाता था। प्रातः यह फिर सीधा हो जाता था। यह क्रम नित्य-प्रति पूरे वर्ष चलता था। इस विस्मयकारी घटना को देवी समझा जाता था और काफी लोग इसके दर्शन के लिए आने लगे / यह भी कहा जाने लगा कि पेड़ को भेट चढ़ाने से बहुत-से रोग आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो जाते हैं। इस विषय में कोई मत प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है। पाश्चात्य देशों में आजकल प्रचलित श्रद्धा उपचारों (Faith cures) की ही तरह ये उपचार भी प्रभावकारी हो सकते हैं या हुए होंगे। यह खजूर (Phoenix sylvestris) एक प्रौढ़ और अनमनशील वृक्ष था और इसके तने का व्यास दस इंच था। यह आँधी में गिर गया होगा, और इसलिए इसका झुकाव उदग्र( Vertical) का 60deg कोणांश था। दैनिक गति में इसके तने की पूरी लम्बाई प्रातः उठी रहती थी और अपराह्न में झुक जाती थी और इस प्रकार तने का ऊपरो सिरा प्रायः तीन फुट ऊपर-नीचे होता था। तने का ऊपरी भाग या 'गर्दन' जिसमें पत्तियाँ होती हैं, प्रातः आकाश की ओर उठा रहता था और अपराह्न में झकाव इस के विपरीत हो जाता था। इस प्रकार प्रातः आकाश की ओर ऊँची उठी हुई, बड़ी और लम्बी पत्तियाँ अपराह्न तक लगभग पन्द्रह फुट की उदग्र दूरी को पार करती थीं। जनसाधारण की धारणा थी कि यह वृक्ष एक जीवित दैत्य था / प्रातः यह अपने सिर को मनुष्य से दुगनी ऊँचाई तक उठाये रहता और सायंकाल उस चरम ऊँचाई से अपनी गर्दन को तब तक झुकाता जाता जब तक कि पत्तियों के सिरे प्रार्थना की मुद्रा में पृथ्वी को न छू लेते।। मैंने इस वृक्ष के दो चित्र लिये, एक प्रातःकाल और दूसरा अपराह्न में (चित्र 32) / मैं इस वृक्ष के विचित्र व्यवहार को देखकर उलझन में पड़ गया। प्राकृतिक
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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