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________________ 42 वनस्पतियों के स्वलेख को पूरा किया जाता है। यह शलाका पारद की एक कटोरी में केवल 0.2 सेकेण्ड के लिए डूबती है। अन क्रिया का अभिलेख धूमित पटट पर लिखता जाता है और यह पट्ट दक्षिणावर्त प्रदोलित होता है। अब यह दिखाया जायगा कि किस प्रकार वनस्पति का प्रतिदिन, संवेद्यता और असंवेद्यता का चक्र रहता है। इसी को उपयुक्त रूप से सोना और जागना कहा जा सकता है। अन्य स्थान पर इसके कारण का पूर्ण विश्लेषण किया गया है / यहाँ मैं संक्षेप में वनस्पति की निद्रा या असंवेद्यता के कुछ कारणों का उल्लेख कर रहा हूँ। वनस्पति अधिक देर तक अँधेरे में रखने पर असंवेदी हो जाती है। तापमान के निम्नन द्वारा उसकी उत्तेजना-शक्ति का और भी अधिक अवनमन होता है। (चित्र 28) / यह याद रखना चाहिये कि एक पूरे दिन में वनस्पति को भिन्न-भिन्न तापमानों का सामना करना पड़ता है / यह तापमान प्रातःकाल न्यूनतम और मध्याह्न में प्रायः अधिकतम हो जाता है। मध्याह्न में अनुक्रिया पूरे मध्याह्न भर वनस्पति की संवेदनशीलता या उत्तेजना-शक्ति अधिकतम रहती है / यह यहाँ पर उद्धृत अभिलेख (चित्र 26) में देखा जा सकता है। इससे चित्र २९--एकसमान और अधिकतम उत्तेजनशीलता प्रदर्शन करने वाला मध्याह्न से तीन बजे अपराह्न तक का मध्याह्न अभिलेख / विदित होता है कि इस समय वनस्पति की अन क्रिया कितनी उत्साहपूर्ण और एकसमान है। इस समय को "कार्यालय-समय" कहा जा सकता है। 9. Bose -- "The Diurnal Variation of Moto-Excitability in Mimosa" - "Annals of Bombay," Oct. 1913.
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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