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________________ 36 वनस्पतियों के स्वलेख तरफ जो पर्ण वृन्त पारद-नीरेय में रखे गये थे, उन्हें उददीपित किये जाने पर उनकी विद्युत्-अनुक्रिया कुछ भी नहीं थी। स्पष्ट है कि वे विष के प्रभाव से मर गये थे। इसकी पुष्टि इन पौधों पर के जू के मर जाने से भी हो रही थी। - क्लोरोफार्म से मृत्यु ऊपर के उदाहरण में केवल अन्तिम घातक क्षणों का ही निरीक्षण किया गया था। किन्तु घातक विष को देकर मृत्यु तक उसके क्रमिक प्रभाव का निरीक्षण करना भी आवश्यक लगा। उसके लिए यह विधि अपनायी गयी--पहले एकसमान उद्दीपना चित्र २५-क्लोरोफार्म के प्रभाव में अनुक्रिया की क्रमिक समाप्ति। द्वारा साधारण अनुक्रिया-शृंखला प्राप्त की गयी / तदुपरान्त इसमें व्याघात उत्पन्न किये बिना विषैले तत्त्व क्लोरोफार्म की वाष्प को पौधे के कोष्ठ में फैलाया गया। किस प्रकार, इस निश्चेितक ने उद्दीपना-शक्ति को क्रमशः समाप्त कर दिया, यह चित्र सं० 25 में दिखाई पड़ रहा है। उसमें अनुक्रिया का घटाव निरन्तर बढ़ता जा रहा है। निश्चेितक की लम्बी और सतत क्रिया का परिणाम घातक हुआ और उसने विद्युत्-अनुक्रिया की पूर्ण समाप्ति ही कर दी। वनस्पति की द्रवदहन द्वारा मृत्यु ये तथ्य यह प्रमाणित करने के लिए यथेष्ट हैं कि विद्युत्-अनुक्रिया द्वारा महत्त्वपूर्ण जीवन-क्रियाओं के परिवर्तन को सही-सही आंका जा सकता है, जो जीवन
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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