________________ . 21 वनस्पति का आचरण . अधिक सरल और एक-दूसरे से अलग होते जाते हैं। अन्त में वे बिना किसी विशेष अलगाव के जीवधारी की रचना के सामान्य समूह में लुप्त हो जाते हैं। फिर यदि प्राणि-श्रेणी के उच्चतम शिखर पर चेतना का सम्बन्ध जटिल तंत्रिका संस्थान के केन्द्रों से है, तो क्या हमें यह नहीं मान लेना चाहिये कि चेतना का विस्तार पूरी श्रेणी के अन्त तक है और जहाँ तंत्रिकाएँ स्वतंत्र रूप छोड़कर अविभेदित जीवनयुक्त पदार्थ (अनडिफरेन्शियेटेयड लिविंग मैटर)में भी समा जाती हैं, वहाँ भी चेतना हलकी भले ही पड़ गयी हो किन्तु बिलकुल लुप्त नहीं होती? ऐसी स्थिति में सिद्धान्त रूप से सभी जीवनयुक्त वस्तुएँ चेतनामय हो सकती हैं / सिद्धान्त रूप से चेतना और जीवन सहविस्तारी हैं। जब अमीवा किसी ऐसी चीज के सामने आता है जिसे वह अपना भोजन बना सकता है तो वह अपने प्रतन्तु (फिलेमेंट्स) उसकी ओर बढ़ाता है जिससे वह बाह्य पदार्थों को खींचकर अपने में समेट ले। ये कूटपाद (Psundopodium) वास्तविक अग हैं और इसलिए शरीरयन्त्र की संरचना के अन्तर्गत आ जाते हैं; किन्तु वे अस्थायी अंग होते हैं जिनका सर्जन कार्यविशेष के लिए होता है। यह अत्यधिक सम्भव है कि चेतना, जो आरम्भ में सब जीवों में मौलिक रूप से स्थित रहती है, जहाँ स्वतः स्फूर्त गति नहीं रह जाती वहाँ सुषुप्त रहती है और जब जीवन स्वतः स्फूर्त हो जाता है तब जाग्रत हो जाती है। इस प्रकार प्राणि-जीवन में चेतना का सम्बन्ध अन्तःस्थ अप्रत्यक्ष कारणों से स्वतःस्फूर्त या स्वेच्छारित गति से सम्बद्ध माना जाता है। यह तंत्रिका प्रतिक्रियाओं (नर्वस रियेक्शन) से भी सम्बन्धित है। यह माना जाता है कि ये दो विशिष्ट गुण वनस्पति में बिलकुल नहीं हैं। ___ इन अति सूक्ष्म प्रश्नों को छोड़कर, जिन पर अधिकारी जनों का विचार अत्यधिक विभक्त है, हम यहाँ परीक्षणात्मक तथ्य और उनके निहितार्थ पर विचार करेंगे। अब यह स्पष्ट हो जायगा कि उच्चतम प्राणियों की कोई भी ऐसी विशेषता नहीं है जो वनस्पति में पूर्वाभासित न हो। हम पायेंगे कि सभी वनस्पति, यहाँ तक कि स्थिर एवं परिदृढ़ वृक्ष भी देखते हैं, अनुभव करते हैं और उनमें प्रत्यक्ष रूप से बाह्य उद्दीपना के प्रति अनुक्रिया होती है / यहाँ तक कि ऐच्छिक गति भी, जो प्राणी . का विशिष्ट गुण है, वनस्पति में अनुपस्थित नहीं है, सुप्त भी नहीं है वरन् सक्रिय रूप से विद्यमान हैं। मैं बाद के अध्याय में उन प्रयोगों का वर्णन करूँगा जिनसे यह सिद्ध होगा कि बहुत-सी वनस्पतियों का तंत्रिका-संस्थान ऐसा है जिसमें विभेद पहचानने की शक्ति उच्च श्रेणी की है।