________________ 20 वनस्पतियों के स्वलेख गुना और हिन्दू से चौगुना अधिक संवेदनशील पाया गया / ये निरूपण जितने ही अप्रत्याशित हैं, उतने ही आश्चर्यजनक भी हैं। ये सिद्ध करते हैं कि मनुष्य और पशुओं के ये दावे कि वे अपने "तुच्छ समझे जाने वाले भाई वनस्पति" से संवेदनशीलता में उच्चतर हैं, गहराई से देखने पर खरे नहीं उतरते। - इस सामान्य वर्णन में मैं वनस्पति पर आघात के प्रभाव के विषय में, उत्तरदाता शक्ति को क्षीण करने वाली श्रान्ति के प्रभाव और प्रकाश के तनिक भी घटने-बढ़ने के इसके ज्ञान के बारे में, जो मनुष्य के ज्ञान से कहीं अधिक है, कह रहा था। _ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि क्या वनस्पति पर चेतना का आरोपण उचित है। कठिनाई यह है कि किस प्रकार चेतना को स्पष्ट किया जाय और एक ऐसी रेखा खींची जाय जिसके नीचे चेतना वर्तमान न हो और जिसके ऊपर वह जीवन-क्षेत्र में पदार्पण करती हो। ___दो प्रकार से जीवन सम्बन्धी ज्ञान की सीमा बढ़ायी जा सकती है। हम इस सिद्धान्त से आरम्भ कर सकते हैं कि विभिन्न प्रकार के जीवों की सृष्टि विशेष रूप से हुई है / उनके शारीरिक और मानसिक गुण विशिष्ट हैं। या सम्बन्धित रूपों में समानता पाने पर हम क्रमिक विकास में विश्वास कर सकते हैं। हम इस सम्बन्ध में डारविन के आजीवन-कार्य के लिए आभारी हैं, जिसके कारण विभिन्न जीवों के (विकासजन्य) उद्भव का यह सिद्धान्त मान्य हो चुका है / उद्विकास की यह प्रक्रिया न केवल . नये रूपों के विकास में ही बल्कि विभिन्न जीवनावश्यक प्रकार्यों के निष्पादन के लिए आवश्यक विशेष अंगों के विकास में भी सक्रिय रही है। चिर काल से प्रचलित यह विचार कि प्राणियों और वनस्पति की शारीरिक रचनाएँ, चूंकि उनकी वृद्धि विपरीत स्तर पर हुई है, मलतः भिन्न हैं, अभी भी चल रहा है। किन्तु इस कृति में जो साक्ष्य प्रस्तुत किया जा रहा है, वह यह स्पष्ट करने के लिए यथेष्ट है कि यह विचार बिलकुल निर्मूल है। अब चेतना के प्रश्न पर फिर से विचार किया जाय। हम साधारणतया कहते हैं कि हमारे प्रिय पशुओं, उदाहरण के लिए कुत्तों में चेतना होती है। हम सहानुभूति के कारण इसे अनुभव कर पाते हैं। किन्तु क्या मछली में भी चेतना है ? कुछ लोगों की सम्मति में है, कुछ की सम्मति में नहीं है। जन्तु-जगत् में चेतना जीवन के किस स्तर पर आरम्भ होती है ? वर्गसाँ ने इस प्रश्न पर अपनी 'माइण्ड एनर्जी' नामक पुस्तक में विचार किया है। __चेतना के लिए मस्तिष्क अनिवार्य है--यह बात कहीं से सिद्ध नहीं होती। प्राणि- श्रेणी में हम जितने ही नीचे जाते हैं, तंत्रिका-संस्थान केन्द्र (नर्व सेंटर्स) उतने ही