________________ अध्याय 3 वनस्पति का आचरण प्राणियों की विभिन्न गतियाँ पेशी-यन्त्र-रचना द्वारा होती हैं, जो इन सभी में "एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति करती है / जब द्रुत गति की आवश्यकता होती है तो प्रतिक्रिया तीव्र होती है। मन्दगति प्राणियों में अनुक्रिया धीमी होती है। विभिन्न प्रकार के प्राणियों की पेशी-प्रतिक्रिया के अध्ययन से इस तथ्य की पुष्टि होती है। इस प्रकार जब हम मेढक के पैर की पेशी में विद्युत द्वारा आघात पहुँचाते हैं, तब पेशी-यन्त्र को सक्रिय होने में कुछ समय लगता है। आघात पहुँचाने और अनुक्रियागति के बीच समय लगता है। इस नष्ट समय को "अव्यक्त काल" कहते हैं। मेढक में यह प्रायः एक सेकेण्ड का सवां भाग है। यह "अव्यक्त काल" मन्दगति कछुए में बहुत ही अधिक होता है। प्रेरक यन्त्र की तीव्रता का अन्तर किस बात पर निर्भर है ? बाद के अध्याय में इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयत्न किया जायगा। - मनुष्य में भी आघात की प्रतिक्रिया अविलम्ब नहीं होती। उद्दीपना और अन क्रिया में कुछ समय का अन्तर होता है। इस "अव्यक्त काल" का भी समय एक ही व्यक्ति में दिन के सब समय एक-सा नहीं रहता। प्रातः उठने के समय हम कुछन-कछ मन्द रहते है। मध्याह्न में पूर्ण सक्रिय और दिन के अन्त में थके होने के कारण अनुक्रिया मन्द हो जाती है। ____ क्या वनस्पति के चर-यन्त्र में भी ऐसी ही विलक्षणताएं होती हैं जैसी प्राणी में ? क्या वनस्पति में आघात की अनुक्रिया अविलम्ब होती है ? या इससे पूर्व कोई निश्चित अध्यक्त काल रहता है ? इसका ठीक-ठीक माप करने के लिए हमारी ज्ञानेन्द्रियों पर्याप्त प्रखर नहीं हैं / इसीलिए यह आवश्यक है कि स्वयं वनस्पति द्वारा सेकेण्ड के इन सूक्ष्म अंशों का अभिलेख कराया जाय / प्रतिस्वन अभिलेखक, किस प्रकार गुरुत्वाकर्षण-गति द्वारा फिसलते हुए धूमित-काँच पर अनुक्रिया अभिलेख करता है, यह स्पष्ट किया जा चुका है। नीचे जाते समय एक निश्चित विराम-स्थान पर गतिमान् कांच पट्ट एक विद्युत्-सम्बन्ध स्थापित करता है जिससे पौधे को