________________ 14 वनस्पतियों के स्वलेख हरण में एक शक्तिशाली मनुष्य के साथ एक निर्बल मनुष्य को बाँध दें। तब पहले मनुष्य की अनुक्रिया सबकी आँखों में स्पष्ट हो जायगी। साधारण वनस्पति के तने का ऊतक बराबर संवेदनयुक्त होता है जिससे एक भाग की सकोची गति का विरोध ठीक उसके विपरीत भाग की गति करती है / फलतः जब सममित (Symmetrical) उद्दीपना होती है, स्कन्ध एक तरफ या दूसरी तरफ झुकने की अनुक्रिया नहीं करता। उसकी सारी लम्बाई संकुचित होकर छोटी हो जाती है, लेकिन यह इतनी कम होती है कि वह अन्तर दिखाई नहीं देता। किन्तु सामान्य पौधों के इस संकुचन का अभिलेख आवर्धक अभिलेखक द्वारा लिया जा सकताहै / वास्तव में साधारण स्कन्ध की अनुक्रिया, सचेतन लाजवन्ती के समान ही है / यद्यपि उतनी स्पष्ट नहीं है। तन्तु की मरोड़ सामान्य पौधों की चेतनता को प्रदर्शित करने वाला एक चमत्कारी प्रयोग इस प्रकार है / किसी अवलम्बन में लिपटा हुआ एक तन्तु काट कर अवलम्ब से अलग कर दिया गया, ऐसा लगता है कि वह बिलकुल अचेतन है। किन्तु तीव्र विद्युत् आघात करने पर कुन्तलित तन्तु तुरन्त मुड़ने लगता है और उसकी ऐंठन पीड़ित कृमि की ऐंठन की तरह ही तीव्र होती है। इस विलक्षण घटना को यह तर्क स्पष्ट करता है-तन्तु जब किसी टहनी को छूता है तब, जैसा सभी जानते हैं, वह अवलम्बन से लिपटने लगता है। कुन्तल के अन्दर की सतह निरन्तर रगड़ से कड़ी हो जाती हैं, और उसकी बाहरी सतह उसकी तुलना में अधिक सचेतन रहती है। कुन्तल का बाहरी या उदुब्ज हिस्सा वस्तुतः पीनाधार के अधरार्ध की तरह है और उद्दीपन द्वारा प्रबलता से सिकुड़ता है। विद्युत्-उद्दीपना द्वारा उदुब्ज हिस्से के गुरुतर सिकुड़ने से कुन्तल खुल जाता है / अब तक के इस प्रकार के प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि सचेतन और 'सामान्य' पौधों में अब तक का भेद अकारण हैं। उनमें अन्तर केवल आंशिक है। अगले अध्याय में हम देखेंगे कि बाह्य दशाओं के परिवर्तन से पौधों पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है और वनस्पति द्वारा स्वयं इन विलक्षण आन्तरिक परिवर्तनों को प्रश्नात्मक वैद्युतिक आघातों से उत्पन्न अनुक्रियाओं द्वारा प्रकट कराना संभव है।