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________________ वनस्पतियों के स्वलेख जीवित तन्तु उत्तेजित किये जाते हैं, एक वैद्युतीय 'आघात' प्रदर्शित करता है और अन्ततः स्पष्ट होता है कि प्रत्युत्तरों के प्रकारों में से संवेदना स्वयं एक प्रकार है। दृष्टिपटल का प्रत्युत्तर दृष्टि है, कान का श्रवण और इसी प्रकार अन्य इन्द्रियों और चेतना में मस्तिष्क के विविध अंश विविध उत्तरदायी अवयवों के कार्य करते हैं / प्रयोगशाला में अनुसन्धान की दृष्टि से मान लीजिय, हम मेढक के दृष्टितन्तु को मस्तिष्क की जगह 'गैलवनोमीटर' से जोड़ दें तो यह पाया जायगा कि जब भी इस तन्तु पर प्रकाश पड़ता है, 'गैलवनोमीटर' आकस्मिक झुकाव के द्वारा प्रत्युत्तर देता है ठीक वैसे ही जैसे मस्तिष्क में प्रतिक्रिया विशेष संवेदनों के रूप में दिखाई देती है / इस प्रकार हम देखते हैं कि वनस्पति के प्रत्युत्तर का अभिलेख पाने की कुछ सम्भावना है, जिससे उसकी भीतरी दशा और उस दशा में होने वाले परिवर्तन ज्ञात हो सकते हैं। इसमें सफल होने के लिए हमें सर्वप्रथम किसी ऐसी विवश करने वाली शक्ति को खोजना होगा जो वनस्पति को यांत्रिक या वैद्युत संकेतमय उत्तर देने को बाध्य करे ; द्वितीय, ऐसा उपाय निकाला जाय जो इन संकेतों को सुबोध अभिलेख में परिवर्तित कर दे / अन्त में हमें स्वयं संकेत लिपि के महत्त्व विशेष को समझने की कोशिश करनी होगी। इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए कि क्या जीवों और वनस्पतियों की प्रतिक्रिया में कुछ मूलगत एकता है, यह देखने के लिए हमें पहले यह जानना होगा कि संवेदनशीलता केवल कुछ ही पौधों की विशेषता है अथवा सब पौधों की; और क्या उनके सब अवयव संवेदनशील होते हैं ? तब हमें जीव और वनस्पति की तुल्य अवस्थाओं में विशिष्ट प्रतिक्रियाओं की तुलना करनी होगी और यह देखना होगा कि दोनों दशाओं में स्वाभाविक प्रतिक्रिया और परिवर्तित दशाओं में उनके रूपान्तर एक-से होते हैं अथवा नहीं। कोई प्राणी आघात पाते ही तुरन्त प्रतिक्रिया नहीं दिखाता। आघात और उसके बाद उत्तर के आरम्भ में थोड़ा समय लगता है। यह समय अव्यक्त काल' (Latent Period) कहलाता है। मनोवैज्ञानिक इस व्यवधान द्वारा अपने मानव रोगी के विषय में उसके शब्दों द्वारा कथन से कहीं अधिक जान जाता है। वनस्पति में भी आघात और उसकी प्रतिक्रिया के बीच एक निश्चित काल व्यतीत होता है / क्या इस अव्यक्त काल में प्राणी की तरह उसकी भी बाहरी या भीतरी दशा में परिवर्तन के साथ रूपान्तर होता है ? क्या यह सम्भव है कि हम वनस्पति द्वारा इस स्वल्प अव्यक्त काल को लिखा सकें ? इसके अतिरिक्त क्या वनस्पति भी उन विविध क्षोभकों द्वारा उत्तेजित होता है जिनसे प्राणी उत्तेजित होता है ? क्या यह उत्तेजना
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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