________________ मूक जीवन दिन सूर्योदय से पूर्व की अँधेरी घड़ियों में लिखे थे; स्वयं उस प्राणान्तक रात्रि की एकाकी घड़ियों की गाथा कहते हैं। यदि मनुष्य के हस्तलेख को रेखाओं और उनकी वक्रताओं से ऐसा रहस्य-भेदन आलोचक की आँखों द्वारा किया जा सकता है तो कदाचित् वनस्पतियों को भी स्वलेख देने के लिए तैयार किया जा सकता है जिससे उनकी आंतरिक अवस्था का भेद इसी प्रकार स्पष्ट हो सके। इसको सम्पन्न करने का एकमात्र बुद्धिगम्य उपाय इसके शरीर पर प्रश्नात्मक आघात की अभिक्रिया का अभिलेख प्राप्त करना है / जब किसी प्राणी को वाह्य आघात लगता है तो उससे नाना प्रकार की प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं-यदि वह बाचाल है तो चिल्लाकर, यदि मूक है तो अपने अंगों की गति से / वाह्य आघात प्रोत्साहक है और प्राणी के प्रत्युत्तर प्रतिक्रियाएँ हैं / यदि हम वनस्पति से भी आघात के प्रत्युत्तर में इसी प्रकार का प्रत्यक्ष उत्तर दिलवा सकें तो हम उसके ढंग से उसकी अवस्था का निर्णय कर सकते हैं। उत्तेजनशील दशा में हल्के से हल्के प्रोत्साहन के द्वारा भी असामान्य रूप से सबल प्रत्युत्तर प्राप्त होगा, शक्तिहीन अवस्था में सबल प्रोत्साहन द्वारा भी दुर्बल प्रत्युत्तर ही मिलेगा और अन्त में जब मृत्यु जीवन पर विजय पा लेती है, प्रत्युत्तर देने की शक्ति एकाएक समाप्त हो जाती है / - जब तक हम जीवित रहते हैं, किसी-न-किसी प्रकार से अपने आस-पास के आघातों या प्रोत्साहनों का प्रत्युत्तर देते ही रहते हैं। पदार्थ पर पड़ने वाले प्रोत्साहन से परमाणु-विक्षोभ उत्पन्न होता है जिससे उत्तेजना होती है और यह विक्षोभ अभिव्यक्ति के अनुसार नाना प्रकार से प्रदर्शित होता है। एक ही विद्युत्-धारा का विविध यन्त्रों पर पड़ने वाला अलग-अलग प्रभाव हम एक क्षण के लिए देखें। एक प्रकार से अभिलेखक यन्त्र पर व्यवहार करने पर यह गति उत्पन्न करती है, दूसरे यन्त्र पर यथा विद्युत् घण्टी में यह ध्वनि पैदा करती है तथा तीसरे में प्रकाश / इसी प्रकार जीवित तन्तुओं पर क्रियाशील प्रोत्साहन, उत्तेजना उत्पन्न करता है जो प्रकट करने वाले अवयवों के अनुसार विभिन्न रूपों में प्रस्तुत होता है। ____सर्वप्रथम अंगविक्षेप द्वारा प्रत्युत्तर का सामान्य उदाहरण लीजिये, हाथ पर उबलते पानी की एक बूंद पड़ने से मांसपेशियों में संकुचन होने लगता है और हाथ खिंच जाता है। लाजवन्ती के संवेदनशील पौधे की पत्ती में भी यही देखा जाता है, जो आघात पाकर शीघ्रता से नीचे झुक जाती है / स्पर्श से, उत्तेजना से माक्षभिक्ष (Dionaea) की पत्ती भी अपने शिकार, मक्खी, को बन्द कर लेती है। इस यंत्रवत् अंग-संचालन के बजाय जैसा कि हम आगे देखेंगे प्रोत्साहन के उत्तर में विद्युत-संचालन को भी ले सकते हैं। एक उपयुक्त वैद्युत-अभिलेखक, गैलवनोमीटर, प्रत्येक बार जब