________________ मूक जीवन स्थानीय है या यह एक ऐसा आवेग उत्पन्न कर देता है जो पौधे की पूरी लम्बाई तक जाता है और दूरी पर ही एक गति उत्पन्न कर देता है ? यदि ऐसा है तो यह आवेग किस गति से चलता है, किन दशाओं में यह गति बढ़ जाती है और किन अन्य अवस्थाओं में यह विलम्बित या रुद्ध होती है ? क्या वनस्पति से ही इस गति और उसमें होने वाले परिवर्तनों का अभिलेख बनवाया जा सकता है ? क्या जीवों के तंत्रिकागत आवेग (Nervous impulse) और वनस्पति के उत्तेजनाजन्य आवेग में कोई समानता है ? जीवों के विषय में विविध औषधियों का लाक्षणिक प्रभाव न्यूनाधिक ज्ञात है। क्या वनस्पति भी इसी प्रकार उनकी क्रिया के प्रतिग्रहणशील है ? क्या मात्रा के अनुसार विष के प्रभाव में अन्तर होगा ? क्या एक विष के प्रभाव का दूसरे विष के प्रभाव से, जो प्रतिविष का कार्य करता है, प्रतिकार किया जा सकता है ? प्राणी में कुछ स्पन्दित होने वाले ऊतक (Tissues) हैं जैसे हृदय / क्या वनस्पति में भी ऐसे ही स्वतः प्रवृत्त स्पन्दनशील ऊतक हैं ? यदि हां, तो क्या प्राणी और वनस्पति के ये स्वतः प्रवृत्त स्पन्दन बाहरी अवस्थाओं द्वारा एक ही प्रकार से प्रभावित होते हैं ? और फिर स्वतः-प्रवृत्ति और स्वचलता (Automatism) का वास्तविक अर्थ क्या है ? दैहिक वृद्धि स्वचलता का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है; किन्तु वनस्पति में इस वृद्धि का क्रम इतना न्यून है कि हम उसे प्रत्यक्ष देख नहीं सकते। तब फिर किस प्रकार इस वृद्धि-दर को बढ़ाया जाय कि इसका तत्काल माप किया जा सके ? इस अनन्त गति में प्रकाश, स्पर्श या विद्युत्-वाह के आघात के बाहरी उद्दीपकों से क्या परिवर्तन होते हैं ? पानी देने या उसकी रुकावट, और विविध औषधियों के प्रभाव से क्या परिवर्तन होते हैं ; कौन-सी मुख्य अवस्थाएँ सर्वोपरि हैं, जो वृद्धि को उद्दीप्त या अवरुद्ध करती हैं। अन्त में जब जीवनान्त के बहुमुखी प्रकार में से किसी प्रकार से जीवन अन्ततः समाप्त होता है, तो क्या उस क्षण-विशेष का पता लगा सकना सम्भव होगा? क्या मृतप्राय पौधा. उस क्षण का कोई ऐसा सुस्पष्ट संकेत देता है जिसके उपरान्त उसकी क्रियाशीलता सदैव के लिए समाप्त हो जाती है ?