________________ 174 वनस्पतियों के स्वलेख क्रियाशील अंग पर धक्का देता है। इसे प्रभावी कहेंगे, जो एक पेशी हो सकती है। तब गति द्वारा अनुक्रिया स्पष्ट रूप से व्यक्त होती है / कुसुभाम (Sea-anemone) जैसे निम्न प्राणी में भी इस तंत्रिका और पेशी-प्रणाली का प्रारम्भ दिखता है। इसमें इसके अंग को उद्दीप्त करने पर दूर के भाग में एक गतिमान प्रतिक्रिया होती है। मध्य भाग में कोई गति नहीं होती। संग्राहक और प्रभावी, एक दूसरे से कुछ दूरी पर रहते हैं और इनका संयोग तंत्रिका द्वारा होता है। उत्तेजना को इस प्रकार ले जाने की रीति, जिसमें एक बिन्दु में उद्दीपना देने पर कुछ दूरी पर वह गति द्वारा व्यक्त होती है, संवेदनशील लाजवन्ती में जो कुछ होता है, उससे भिन्न नहीं हैं। यहाँ भी एक छोटे पर्णवृन्त में उद्दीपना, यथा विद्युत् आघात देने पर आवेग होता है। यह आवेग पर्णवन्त पर चलता हुआ इसके गतिमान अंग, पीनाधार तक पहुंचता है / पीनाधार के संकुचन द्वारा पर्ण अकस्मात गिर जाते हैं / यद्यपि वनस्पति और प्राणी में प्रभाव इतने समान हैं, फिर भी प्रचलित विचार यही है कि वनस्पति और प्राणी में आवेग भिन्न रीति से चलता है। जल-नली अथवा तंत्रिका अब हम विचार करें कि किन संपरीक्षक तथ्यों द्वारा इस मत की पुष्टि होती है / फेफर (Pfeffer) ने एक पौधे को उद्दीप्त करने के लिए छुरी से आघात किया। अब देखा जाय कि इस क्रूर व्यवहार का पौधे ने किस प्रकार उत्तर दिया। जब उद्दीपना छुरी का आघात हो तब मनुष्य द्वारा एक विचारशील उत्तर देने की कल्पना कीजिये / वह तो समुचित उत्तर देने के स्थान पर अव्यवस्थित-सा हो जायगा / फेफर ने देखा कि छुरी के आघात से पौधे के व्रण से रस निकलने लगा। उन्होंने कल्पना किया कि पौधे का आशून तना जल से भरी एक रबर की नली है। उन्होंने यह भी सोचा कि रस के निकलने से दाब में अकस्मात् कमी होती है। इस कमी से संवेदनशील पीनाधार में एक खिंचाव होता है। यह जल यांत्रिक आवेग नली के जल की गति के ही समान माना जाता है। रिक्का (Ricca) भी उद्दीपना के लिए छुरी के आघात की रीति पर मुग्ध है। वह कल्पना करते हैं कि काष्ठ पर आघात करने से हारमोन की तरह एक उद्दी. पक पदार्थ निकलता है और यह परिकल्पनात्मक हारमोन रस-उत्कर्ष द्वारा पर्ण में पहुँचता है, जिसे वह गति के लिए उद्दीप्त करता है / हारमोन का जो सिद्धांत उसके लेखकों स्टालिंग (Storling) और बेलिस (Bayliss) द्वारा प्रस्तुत किया