________________ अध्याय 23 पौधों की तंत्रिका जब हमारी अंगुली के अग्र भाग को खरोंचा जाता है, एक आवेग होता है जो मस्तिष्क में संवेदना के रूप में प्रतीत होता है। यह सन्देश एक तंत्रिकातन्तु द्वारा ले जाया जाता है जो आवेग के संवाहन की एक निश्चित वाहिका के रूप में काम करता है। यदि तंत्रिका किसी प्रकार आहत हो जाती है तो संवेदना का अन्त हो जाता है / खरोंच और उसके कारण उत्पन्न संवेदना ऐसा लगता है कि एक साथ होते हैं, किन्तु यथार्थ में प्रेरणा को अंगुली के अग्रभाग से मस्तिष्क तक जाने के लिये कुछ समय लगता है / तंत्रिका-आवेग की गति कुछ इस प्रकार की है कि जिस व्यक्ति पर, यह संपरीक्षण किया जाता है उसे जैसे ही अपनी अंगुली पर खरोंच की संवेदना का आभास होता है, वैसे ही वह संकेत भेजता है। खरोंच और संकेत के मध्य का समय हमें तंत्रिका की लम्बाई में आवेग की गति की गणना के लिए समर्थ करता है। ___यदि तंत्रिका पेशी में जाकर समाप्त हो जाती है, तो आवेग के आगमन का संकेत पेशी के स्फुरण द्वारा होता है। तंत्रिका-आवेग-विषयक संपरीक्षण प्रायः मेढक की तंत्रिका और पेशी के एक टुकड़े पर, जो अलग करने पर भी कई घंटे तक जीवित रहती है, किया जाता है / अब यदि तंत्रिका के एक दूरस्थित बिन्दु पर विद्युत आघात किया जाय तो आवेग तंत्रिका में से होता हुआ अन्तिम पेशी तक जायगा / यह अन्तिम पेशी एक अभिलेखक उत्तोलक से संयुक्त रहती है। यह अभिलेख एक घूमते हुए ढोल पर लिया जाता है। इस ढोल पर काललेखी (Chronograph) द्वारा समय-बिन्दु अंकित होते हैं। आवेग की गति तंत्रिका की लम्बाई और उसके जाने में लगने वाले समय से ज्ञात की जाती है। प्राणी के तंत्रिका-परिपथ में तीन अलग-अलग भाग गिने जा सकते हैं / पहला है 'संग्राहक' जो बाह्य आघात को लेता है; दूसरा है 'संवाहक' अर्थात् वह नाड़ी जिसके द्वारा दूर तक उत्तेजना ले जायी जाती है, यद्यपि आवेग के जाते समय इस संवाहक ऊतक में कोई दृश्यमान परिवर्तन नहीं होता। अन्त में आवेग अन्तिम अन.