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________________ अध्याय 22 कार्बन का परिपाचन जीवन की निरन्तर सक्रियता के लिए जीव द्वारा पहले से संचित शक्ति के "व्यय की आवश्यकता होती है / उदाहरणार्थ रस-उत्कर्ष को लिया जाय। प्रेरक ऊतक की सतत, उदञ्जन क्रिया द्वारा अत्यधिक मात्रा में जल यथेष्ट ऊंचाई तक ले जाया जाता है। इस कार्य के लिए शक्ति कार्बनिक रासायनिक पदार्थों के आन्तरिक दहन या श्वसन से मिलती है। शक्ति के ह्रास को पुनः स्थापित करने के लिए बाह्य शक्ति के अवशोषण और संचय की आवश्यकता होती है। शक्ति की यह प्राप्ति दो प्रकार से बनायी रखी जा सकती है-जीव द्वारा इसका सक्रिय या गतिमूलक अवशोषण अथवा निष्क्रिय, गुप्त या अदृश्य अवशोषण / पहली प्रणाली वनस्पति की विशेषता है और दूसरी प्रणाली प्राणी की। वनस्पति अपने पर्णहरित (Chlorophyll) के कारण सूर्य की गतिक किरणों की शक्ति का अवशोषण करती है; और इस प्रकार वायुमण्डल की कार्बनिक गैस से यह कार्बनिक पदार्थ बनाने में सफल होती है। यह कार्बनिक पदार्थ, मिश्र कार्बन का मिश्रण होता है; जिसमें अवशोषित प्रकाश की शक्ति रासायनिक मिश्रण के रूप में संचित रहती है। इस प्रकार से प्रस्तुत कार्बनिक पदार्थ का कुछ भाग वनस्पति-शरीर की वृद्धि को बनाये रखने और इसकी जीवन-क्रिया का संचालन करने के काम में आता है / बचा हुआ भाग वनस्पति ऊतक में भविष्य की वृद्धि के लिए आरक्षित पदार्थ के रूप में और विशेषतः प्रजनन कार्य के लिये बीज और फल में संचित रहता है। इसके विपरीत प्राणी अपनी शक्ति और सामग्री की पूर्ति के लिए पूर्णत: कार्बनिक भोजन पर निर्भर है। यह भोजन प्रारम्भ में हरी वनस्पति से ही बनता है / इस प्रकार प्राणी वनस्पति पर निर्भर है और दोनों सूर्य पर निर्भर हैं; वनस्पति प्रत्यक्ष रूप से और प्राणी परोक्ष रूप से / वस्तुतः सूर्य, जीवित जीव में और सामान्यतः दहन-प्रक्रियाओं में व्याप्त उष्मता, विद्युत्दाह या गति, सब शक्तियों का एक मुख्य
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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