________________ 168 वनस्पतियों के स्वलेख स्रोत है और कोयले की आग के सम्मुख खड़ा होना, उस सूर्य की धूप सेंकना है जो लाखों वर्ष पहले कार्बन युग (Carboniferous Period) में दीप्तिमान था। इस प्रकार हरे पौधे का कार्बन-आत्मीकरण जिसे आजकल प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) कहते हैं, सर्वाधिक सैद्धान्तिक और व्यावहारिक रुचि की वस्तु है जिस पर पूरा अनुसन्धान, विशेषकर इसकी सक्रियता को प्रभावित करने वाली स्थितियों का निश्चय करने के लिये, होना चाहिये / यह प्रकाश-संश्लेषण के समय वनस्पति और वायुमण्डल के बीच गैसीय विनिमय का यथार्थ माप लेकर किया जा सकता है अर्थात् या तो अवशोषित कार्बन-डाइआक्साइड की मात्रा या प्रस्तुत ऑक्सीजन की समान मात्रा। कार्बन डाइआक्साइड के अवशोषण के माप में रासायनिक विश्लेषण की जटिलता है और यह प्रणाली अत्यधिक लम्बी और परिश्रमसाध्य है। ऑक्सीजन के प्रदाय का माप अधिक उत्साहवर्धक है। यथार्थ में मैं इस उद्देश्य को लेकर एक यन्त्र बनाने में सफल भी हुआ हूँ। मैं अब इसका उल्लेख करूंगा। परिपाचन का स्वतः अभिलेख ' जल-पादप को अपना कार्बन जल में मिश्रित कार्बनिक अम्ल से मिलता है। जब सूर्य का प्रकाश इन पौधों पर पड़ता है, कार्बनिक अम्ल गैस में विभाजित हो जाती है और कार्बोहाइड्रेट नामक कार्बनिक यौगिकों के रूप में स्थिर हो जाती है। समान मात्रा में ऑक्सीजन बनता है जो पौधे से बुबुद के स्रोत के समान उठता है। ऑक्सीजन के निष्कासन की गति आत्मीकरण की गति बताती है / इस प्रणाली को व्यवहार में लाने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मेरे स्वतः अभिलेखक द्वारा ये कठिनाइयाँ समाप्त हुई। एक जल-पादप का एक टुकड़ा, उदाहरणार्थ, हाइडिला वर्टिसिलेटा (Hydrilla Verticillata) को एक ऐसी बोतल में, जिसमें भरे ताल-जल में यथेष्ट कार्बन डाइआक्साइड का घोल हो, रखा जाता है / इस बोतल का मुख एक विशेष बुबुद यंत्र, बुबदक से उसकी निष्कासित ऑक्सीजन का माप लेने के लिए बन्द कर दिया जाता है। यह बुबुदक एक U नलो से बना होता है, जिसका दूर का मुख पारद की एक बूंद द्वारा बन्द कर दिया जाता है। यह पारद, कपाट का कार्य करता है। पौधे से निष्कामित ऑक्सीजन U नली में घुसकर दाब को बढ़ाती है, और अन्त में यह पारद कपाट को उठा देता है और गैस के एक बुदबुद को निकल जाने देता है। फिर तत्काल ही कपाट बन्द हो जाता है, जब तक यह एक बार फिर गैस की समान मात्रा के निकलने के लिए उठाया न जाय। पारद की यह गति एक विद्युत्-परिपथ को पूरा करती है, जो अब या तो एक घंटी बजाती