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________________ 166 वनस्पतियों के स्वलेख - इसके पश्चात् मैं हृद्-सक्रियता पर काले सर्प के विष की लघु मात्रा के प्रभाव पर अनुसन्धान करने लगा। इस सम्बन्ध में मुझे शुचिकावरण नामक एक भेषज, जिसका मुख्य संघटक, काले सर्प के विष की एक लघु मात्रा है, में रुचि हुई। यह भेषज हिन्दू भेषज-प्रणाली में प्रायः एक सहस्र वर्ष से प्रयोग में लाया जाता है। इसके उपयोग के साथ-साथ अन्वेषकों के लिए एक नयी अध्ययन-शाखा का आविर्भाव हुआ / इन लोगों ने विविध ऐलकालायडों और धात्विक मिश्रणों के भेषजीय पदार्थों का व्यवस्थित अध्ययन किया। अब भी जब रोगी, रोग की अन्तिम दशा में रहता है और उसके हृत्स्पन्द के रुकने से लगभग मृत्यु के मुख में होता है, उस आपातिक स्थिति में शुचिकावरण का उपयोग होता है। ऐसा कहा जाता है कि ऐसी आपातिक स्थिति में हृद्-सक्रियता को पुनर्जीवित करने और बली बनाने के लिए काले सर्प के विष का यह भेषज अत्यधिक प्रभावी होता है। ____शुचिकावरण का प्रभाव निम्नन की दशा में प्राणी-हृदय पर क्या होता है, यह देखने के लिए मैंने मछली के कोटर में भेषज के मिश्रित घोल का इंजेक्शन दिया। 1 Sh चित्र १०१--हृदय को उद्दीप्त करने में शुचिकावरण का प्रभाव / इसके द्वारा स्पन्दन के विस्तार और आवृत्ति में एक निश्चित सुधार हुआ। दूसरी स्थितियों में इंजेक्शन के पश्चात् अनियमित स्पन्दन स्पष्ट रूप से नियमित हो गये।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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