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________________ प्राणी और वनस्पति पर ऐलकालायड और नाग-विष की क्रिया के लिए मैंने पोटैसियम ब्रोमाइड का उपयोग किया। चित्र 64 में अभिलेखों की प्राथमिक शृंखला में स्वाभाविक हृत्स्पन्द दिखाया गया है। पोटैसियम ब्रोमाइड का मिश्रित घोल एक सहस्त्र में पाँच भाग देने के पश्चात् विस्तार और आवृत्ति दोनों में ही अत्यधिक निम्नन हुआ। तब कस्तूरी का घोल, एक सहस्त्र में एक भाग दिया गया / इसने न केवल ब्रोमाइड की प्रावसादक क्रिया को निष्प्रभावित किया, बल्कि सक्रियता को प्रसामान्य से अधिक बढ़ा दिया। पौधे के ऐसे ही मामले में ब्रोमाइड से अत्यधिक अवसाद उत्पन्न हुआ; कस्तूरी के उपयोग द्वारा न केवल अवसाद समाप्त हुआ बल्कि उदञ्चन क्रिया के अत्यधिक बढ़ने से दाब बढ़ गया (चित्न 65) / ऐसी विरोधी प्रतिक्रियाओं का विष और उसके प्रतिकारक की क्रिया द्वारा और भी आश्चर्यजनक प्रदर्शन होता है। इसलिए जब अफीमसत की सतत क्रिया में पौधा मृतप्राय था, जैसा प्रकाश देशना के बिलकुल बायीं ओर हटने से दिखता है, ऐट्रोपीन के प्रयोग से स्पन्दन पुनः होने लगा। प्रकाश-किरण दाहिनी ओर चली गयी। इससे पौधे के पुनर्जीवित होने का पता चलता है। उद्दीपक-प्रावसादक कुचला (Strychnine) की एक मात्रा एक सहस्त्र भाग में एक भाग ने हृत्स्पन्द की क्रिया को अत्यधिक बढ़ा दिया; जिससे स्पन्दन की गति द्रुत हो गयी। दूसरी ओर 2 प्रतिशत के घोल ने अत्यधिक निम्नन किया और अन्ततः हृत्स्पन्द रुक गया (चित्र 66) / Strychnine कुचला की छोटी और बड़ी मात्रा द्वारा उद्दीपन और निम्नन का समानान्तर प्रभाव चित्र ९७--कुचला की क्रिया। हुआ। एक सहस्त्र भाग में एक भाग की मात्रा नन्द मात्रा में रस-निपीड ने उद्दीपन का कार्य किया, रस-दाब को बढ़ाया की वृद्धि और तीव्र मात्रा किन्तु एक प्रतिशत की मात्रा में अत्यधिक निम्नन में क्षय / __और ह्रास हुआ (चित्र 67) / '001
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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