________________ आम्र वृक्ष का रुदन 145 हानि होती है / इसलिए पर्णमय वृक्षों में दाब की दैनिक भिन्नता पर्णविहीन वृक्षों के विपरीत होती है / पर्णमय वृक्षों में अधिकतम तापीय दाब प्रातः और निम्नतम तापीय मध्याह्न में होता है। चित्र 82 में ऊपरी मोड़ तापमान की 6 बजे प्रातः से लेकर 6 बजे संध्या तक की भिन्नता दिखाता है। निम्न मोड़ एक पर्णमय वनाम्लिका (Rain-tree) में दाब की भिन्नता दिखाता है / निम्नतम दाब प्रायः दो बजे तापीय मध्याह्न में होता है। दाब-मोड़ तापमान-मोड़ का बिलकुल विपरीत प्रतिबिम्ब दिखता है। मध्याह्न का अधिकतम तापमान निम्नतम आन्तरिक दाब के समान है। इसलिए मध्याह्न में बनाये हुए छेद से जल खिंचता है, निकलता नहीं है। आम्र वृक्ष से स्राव आम्र वृक्ष में अधिक वाष्पोत्सजित पत्तों के होने के कारण आन्तरिक दाब को मध्याह्न में निम्नतम होना चाहिये था। फिर भी उस समय इसका रुदन अथवा स्राव . अधिकतम था / वृक्ष का अधिक निकट से निरीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि उसके बहुत ऊपर छाल में एक स्थान पर छोटा छेद या रन्ध्र था। यह रन्ध्र प्रायः गोंद से बन्द हो जाता था। फिर 1 बजे तीव्र आन्तरिक दाब के कारण रस को बाध्य होकर निकलना पड़ता था। मध्याह्न के लगभग स्राव का अधिकतम होना असंगत था, कारण, इस समय पर्णमय वृक्षों में आन्तरिक दाब निम्नतम रहता है। - इस तथ्य ने मुझे आम्र वृक्ष में दाब की भिन्नता पर अन्वेषण करने को प्रेरित किया। अभिलेखक दाबमापी को रन्ध्र के ठीक व्यासाभिमख बनाये गये एक छिद्र में लगा दिया गया / जैसी आशा की गयी थी, दाब-भिन्नता मध्याह्न में निम्नतम थी; और बनाये हुए छिद्र से तनिक भी स्राव नहीं हुआ। तब तने के उसी खण्ड में ऐसी क्या भिन्नता थी, जिसके कारण एक पार्श्व के रन्ध्र से सक्रिय स्राव हो रहा था और दूसरी ओर बनाये गये छिद्र से बिलकुल नहीं ? मैं सतर्कता से रन्ध्र के चारों ओर के वल्क और ऊतक को हटाते हुए अन्वेषण , करता रहा.। इस अन्वेषण द्वारा एक अनियमित आकार का बड़ा लम्बा छिद्र मिला यह तरुण काष्ठ के सड़कर नीचे गिर जाने से बना था। इस छिद्र का बाह्य भाग एक ऐसा वल्क था जो स्वस्थ अधोवाही और बाह्यक वल्क (Cortex) से बना था / छिद्र की आन्तरिक भित्ति, सार काष्ठ या दढ़ काष्ठ की बनी होती है। यह काष्ठ रस का असंवाहक है (चित्र 83) / तने के बायें पार्श्व के छिद्र से पूर्ण रूप से स्राव का न होना और दाहिने पार्श्व के रन्ध्र से अत्यधिक परिवाह का होना, इन दोनों का कारण दोनों पार्यो