________________ 128 वनस्पतियों के स्वलेख प्राणी में रक्त-उत्कर्ष उच्चतर प्राणी में एक संकुचनशील अंग के--जिसे हृदय कहा जाता है--स्वतः सतत-स्पन्दन द्वारा रक्त-प्रवाह बना रहता है। फिर भी हमें हृदय और उसकी यन्त्ररचना की एक सामान्य रूपरेखा बना लेनी चाहिये / क्योंकि वनस्पति में मनुष्य-हृदय की तरह अधिक जटिल और केन्द्रित अंम खोजना युक्ति-युक्त नहीं होगा। वनस्पति की समानता निम्न प्राणियों से ही करनी चाहिये, क्योंकि उसमें हृदय एक लम्बी नली की तरह होता है ,जैसा कि एम्फिआक्सस (Amphioxus) में होता है / वृक्ष में जो पोषक रस होता है वह क्रमसंकोची संकुचन की तरंगों द्वारा संचालित होता है, जो आगे की ओर तीव्रता से बढ़ती हैं। उच्चतर प्राणियों के भ्रूण में भी हृदय एक लम्बी नली की ही तरह होता है / प्राणी के हृद-ऊतक का आवश्यक लक्षण है इसका लयबद्ध स्पन्दन, जिसकी तीव्रता स्थितिविशेष में उपयुक्त रीति से रूपान्तरित होती. रहती है। इस प्रकार कुछ उद्दीपक भेषजों के प्रभावान्तर्गत हृदय तीव्र गति से स्पन्दित होता है और रक्त का तीव्रतर गति से उदंचन होता है। इससे रक्त-प्रवाह भी द्रुततर होता है। प्रावसादक ठीक इसके विपरीत प्रतिक्रिया करता है। हृत्-स्पन्दन को आरम्भ करने के लिए आन्तरिक तनाव (Tension) की एक निश्चित मात्रा की आवश्यकता होती है। इस प्रकार घोंघे के निष्क्रिय हृदय को पूर्ववणित अन्तहद-दाब द्वारा स्पन्दित किया जाता है। एक सीमा के अन्दर हृदय की सक्रियता तापमान के बढ़ने पर बढ़ती है और शीत द्वारा घटती है। ईथर की तरह का निश्चेतक हृद्गति को बढ़ाता है / क्लोरोफार्म की तरह का तीक्ष्ण निश्चेतक तत्काल उद्दीपना करता है, किन्तु इसके बाद सतत क्रिया से वृद्धि घटने लगती है और रुक जाती है। __ अब मैं दिखाऊँगा कि जो भी दशा हृदय की क्रिया को बढ़ाती है, और इस प्रकार रक्त प्रवाह की गति को द्रुततर करती है, वह रस-उत्कर्ष को भी बढ़ाती है, और इसके विपरीत दोनों ही में निम्नन कारक इसे घटाते हैं और रोक देते हैं / इस परीक्षण में जिस कठिनाई का सामना करना पड़ा था, वह थी रस-उत्कर्ष की स्वाभाविक गति के निरूपण और माप के लिए अब तक कोई सन्तोषजनक रीति का न मिलना। रस-प्रवाह का संकेतक पर्ण यह कठिनाई मैंने पर्ण को रस-प्रवाह का संकेतक मानकर दूर की। गमले के पौधे में कभी न कभी शुष्कता द्वारा पर्ण झड़ते हैं। सींचने के बाद वे खड़े हो जाते हैं।