SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रस का उत्कर्ष 125 हो जाता है। आगे चलकर यह तथ्य कि पर्ण अथवा जड़, रस-उत्कर्ष के लिए नितान्त आवश्यक नहीं है, स्पष्ट किया जायगा। उस समय मैं यह दिखाऊँगा कि जड़ और पर्णो को हटा देने पर भी रस-उत्कर्ष होता रहता है। मूलतः जीवन-क्रिया के कारण रस का उत्कर्ष इस प्रकार विभिन्न भौतिक सिद्धांतों के असन्तोषजनक सिद्ध होने के बाद, यह प्रश्न रहता है कि कहीं जीवित कोशिकाओं की क्रिया ही तो रस-उत्कर्ष को प्रभावित नहीं करती? फिर भी इस शारीरिक सिद्धान्त को स्ट्रासबर्गर के कुछ अनिर्णयात्मक चित्र ६८--कटे हुए छोर में पानी देने पर, कटी हुई शाखा के झुके पों का . पूर्ण रूप से सीधा होना (हेमपुष्प)। सिंचाई के पहले (वाहिना) और बाद के चित्र (बायाँ) / परिणाम वाले संपरीक्षणों से तीव्र आघात पहुंचा, जिनके कारण वे यह सोचने लगे कि रस-उत्कर्ष विष के द्वारा प्रभावित नहीं होता, जो सब जीवित ऊतकों के लिए
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy