________________ 124 वनस्पतियों के स्वलेख लिए वे अपने लिए सुलभ जल को ग्रहण कर लेंगी। इस प्रकार जड़ की कोशिकाएँ मृदा से जल लेती हैं, ऊपर की कोशिकाएँ नीचे वाली से और इस प्रकार ऊपर तक यही क्रम चलता जाता है। किन्तु यह रसाकर्षी रीति अत्यधिक मन्द है। अब हम देखें कि अनु कपूर (Eucalyptus) के शिखर पर पत्ते जब तीव्र शुष्कता में मृतवत हो जाते हैं तब इसका . . क्या अर्थ होता है ? जब वर्षा उसकी जड़ों को सिंचित कर देती है तब वे शुष्क पत्ते किस आतुरता से रस के पहुँचने के लिए प्रतीक्षा कर रहे होंगे, इसकी हम सहज ही कल्पना कर सकते हैं। यदि जलगति पूर्णतया रसाकर्षी क्रिया पर निर्भर रहती तब उनका भविष्य विशेष उज्ज्वल न होता, क्योंकि रसाकर्षी क्रिया द्वारा जल को शिखर तक पहुंचाने में कम से कम एक वर्ष से अधिक ही लगता। भौतिक सिद्धान्त के समर्थकों में से एक स्ट्रासबर्गर (Strasburger) भी हैं / ये एक विख्यात वनस्पतिशरीर-वैज्ञानिक हैं / किन्तु इन्हें भी बाध्य होकर कहना पड़ा कि रसाकर्षी शक्तियाँ इतनी मन्द होती हैं कि वे निरर्थक-सी हैं और रसाकर्षी पदार्थों का कोई निश्चित विभाजन भी नहीं है जो किसी इस प्रकार की धारा का होना बता सकता।' इसलिए अवश्य कोई दूसरा कारक क्रियारत होगा, जो रस का तीव्रतर उत्कर्ष प्रभावित कर रहा है। अग्रीय अंगों (Terminal Organs) द्वारा खींचातानी एक दूसरा सिद्धान्त यह है कि अग्रीय अंग पर्ण और जड़, दोनों के ऊपर से खींचने और नीचे से धक्का देने की क्रिया द्वारा रस का उत्कर्ष होता है। यह सिद्धान्त आंशिक रूप में भौतिक है। क्योकि खींचना और धक्का देना क्रम से पर्ण और जड़ की जीवन-क्रिया पर निर्भर है। ऐसी धारणा है कि उच्छ्वसन द्वारा पत्तों के जल को निकालने की क्रिया हो, काष्ठ में वर्तमान वाहिनियों के संयुक्त स्तम्भों में स्थित जल को खींचती है। किन्तु जल-स्तम्भ सतत नहीं होते, बीच-बीच में वायु के बुलबुले होते हैं। यह तो स्पष्ट ही असम्भव है कि ऐसी रस्सी जो जगहजगह कटी हो, जल निकालने के काम में लायी जा सके। यह तो हुई ऊपर से खींचने की बात / यह धारणा है कि नीचे से जड़-दाब द्वारा धक्का दिया जाता है। किन्तु ताड़ में कोई ऐसा जड़-दाब नहीं है जिसका पता चले, फिर भी रस सौ फुट से ऊंचे चढ़ जाता है। पुनः सक्रिय उच्छ्वसन के समय जब वृक्ष को सबसे अधिक जल की आवश्यकता होती है, जड़-दाब सकारात्मक होने के स्थान पर यथार्थ में नकारात्मक 1. स्ट्रासबर्गर, :Text-Book of Botany' ( Eng. Translation, page 187).