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________________ अध्याय 17 रस का उत्कर्ष मदा-जल में भोजन सामग्री घोल के रूप में वर्तमान रहती है। पौधा इसी को अवशोषित करता है। अवशोषित रस का विभाजन या रस का प्रवाह पौधे की कोशिकाओं की आशनता बनाये रखने में सहायता देता है। यह आशूनता वही है जिसके बिना पौधे की वृद्धि और उसकी विभिन्न जीवन-गतियाँ रुक जाती हैं। किन्तु रस वृक्ष के शिखर पर कैसे पहुंच जाता है ? इस प्रश्न ने वैज्ञानिक अनुसंधानकों को दो सौ वर्ष से अधिक समय से उलझा रखा है। एक ओर ती यह विवाद है कि यह केवल भौतिक शक्ति द्वारा ही होता है और दूसरी ओर यह कि ऐसा जीवित ऊतकों की किसी सक्रियता द्वारा होता है। अभी जो कारण स्पष्ट किये जायेंगे, उनसे तो वास्तविक सर्वमान्यता भौतिक सिद्धान्त के ही पक्ष में है, किन्तु जो प्रमाण यहाँ प्रस्तुत किये जायेंगे उनसे यह दृष्टिकोण सर्वथा अमान्य सिद्ध हो जाता है। हम एक दीर्घकाय और पत्तों से भरे हुए वृक्ष को लें। जड़ से पत्तों तक रसप्रेषण करने का उत्तरदायित्व किन भौतिक शक्तियों पर है? इन पर्णो से सतत उत्स्वेद या जल-वाष्प का उच्छ्वसन होता रहता है और शिखर से जड़ तक काष्ठवाहिनियों में एक आंशिक शून्यक (Vacuum) बनता रहता है। इसके परिणामस्वरूप वायुमण्डल का दबाव जल को ऊपर की ओर ले जाता है। किन्तु इस प्रकार जल अधिकतम 34 फुट तक ऊंचा पहुंच सकता है। यही ऊंचाई जल-वायुदाबमापी (Water-barometer) की है। किन्तु ताड़ वृक्ष कभी-कभी 100 फुट से अधिक ऊँचे होते हैं। लेकिन ताड़ वृक्ष भी 450 फुट ऊँचे प्रतंग अनुकर्पूर (Eucalyptus Omygdalina)जैसे कुछ विशाल वृक्षों की तुलना में बौना है। इसलिए वायुमण्डलदाब का सिद्धान्त अपर्याप्त है, जैसे केशिकत्व (Capillarity) का सिद्धान्त भी है। .. रसाकर्षी (Osmotic) क्रिया का सिद्धान्त भी इस घटना को स्पष्ट करने के लिए काम में लाया जाता है। जब एक अर्ध पारगम्य (Semi permeable) थैले में तीव शर्करा-घोल रखकर जल में डुबोया जाता है तो जल उस तीव्र घोल वाले थैले में चला जाता है / वनस्पति-कोशिकाएं भी तीन घोल से भरे थैले की तरह हैं और इस
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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