________________ अध्याय 16 कुमुदिनी का रात्रि-जागरण कवि वैज्ञानिकों के पूर्वगामी हुए हैं। कुमुदिनी क्यों रात भर जागती है और दिन भर अपनी पखुड़ियाँ बन्द रखती है। कारण, वे कहते हैं कि कुमुदिनी चन्द्रमा की प्रेयसी है और जिस प्रकार प्रेमी के स्पर्श से मनुष्य का हृदय आह्लादित होता है उसी प्रकार कुमुदिनी भी चन्द्र-किरणों के स्पर्श से अपना हृदय खोल देती है और सारी रात पहरा देती है। सूर्य के रूक्ष स्पर्श से वह भयभीत होकर संकुचित हो जाती है और दिन भर अपनी पंखुड़ियों को बन्द रखती है / कुमुद की बाह्य पंखुड़ियां हरी होती हैं और दिन में बन्द पुष्प जल में तैरते हुए चौड़े हरे पत्तों में अदृश्य रहते हैं। संध्या समय जैसे जादू के जोर से दृश्य परिवर्तित हो जाता है और श्याम जल पर दीप्तिमान् अगणित श्वेत पुष्प छा जाते हैं (चित्र 64) / यह प्रति दिन घटित होने वाली घटना केवल कवियों द्वारा देखी ही नहीं गयी बल्कि उन्होंने इसका स्पष्टीकरण भी किया है, कुमुदिनी चन्द्रमा से प्रेम करती है और सूर्य से भय / यदि कवि रात्रि के अन्धकार में प्रकाश लेकर निकलता तो वह देख पाता कि चन्द्रमा के प्रकाश की पूर्ण अनुपस्थिति में भी कुमुदिनी खिल जाती है। किन्तु कवि से यह आशा नहीं की जाती कि वह लालटेन लेकर अंधकार में देखता घुमे / केवल वैज्ञानिकों में ही इस प्रकार की अपरिमित जिज्ञासा होती है। दूसरी ओर कुमुदिनी सूर्य के उदय होते ही बन्द नहीं हो जाती, क्योंकि यह पुष्प प्रायः पूर्वाह्न के ग्यारह बजे तक जाग्रत रहता है। एक फ्रांसीसी शब्दकोश-निर्माता ने प्राणि-विज्ञान-वेत्ता कूवियर (Cuvier) से परामर्श लिया। यह परामर्श केकड़े की उसकी इस व्याख्या पर था कि वह एक छोटी लाल मछली है जो पीछे की ओर चलती है। कूवियर ने कहा, “सराहनीय! केवल यह आवश्यक नहीं है कि केकड़ा छोटा ही हो; और जब तक यह उबाला नहीं जाता तब तक लाल नहीं होता, यह मछली नहीं है और पीछे भी नहीं चल सकता, इन अपवादों को छोड़कर तुम्हारी व्याख्या ठीक है / " इसी प्रकार