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________________ 114 वनस्पतियों के स्वलेख प्रकाश की क्रिया द्वारा मुड़ने की घटना में पहला प्रभाव होता है सकारात्मक वक्रता। किन्तु सतत उद्दीपना में क्षतिज प्रेषित उत्तेजना दूरस्थ पार्श्व का संकुचन करती है। इससे पहले वाले मोड़ का क्लीवन (Neutralisation) होता है (चित्र 62 'डी')। कभी-कभी निकटस्थ पार्श्व अत्यधिक उत्तेजना द्वारा थक जाता है, जबकि दूरस्थ पार्श्व अपरिवर्तित रहता है। इसका परिणाम केवल क्लीवन ही नहीं होता है , बल्कि दूरस्थ पार्श्व के अधिक संकुचन द्वारा प्रकाश के विपरीत यथार्थ वक्रता भी होती है (चित्र 62 इ)। मर्कक (Zea Mais) के बीजांकुर को लेने पर यथार्थ संपरीक्षण में एक पार्श्व में तीव्र प्रकाश की सतत क्रिया द्वारा पौधे ने पहले प्रकाश की ओर गति का प्रदर्शन किया। यह अधिकतम अवस्था पर पचास मिनट बाद पहुंचा। फिर पौधा लौटने लगा और उसी स्थान पर वापस आने लगा जहाँ से उसने जाना प्रारम्भ किया था। इस क्लीवन में 43 मिनट और लगे। इसके बाद पौधे की अनुक्रिया नकारात्मक हो गयी। इसका अर्थ है कि जीवन की गतियाँ चंचल नहीं हैं, बल्कि वे अत्यधिक निश्चित दैहिक प्रतिक्रियाओं द्वारा निर्धारित हैं / समस्या पर काबू न पा सकना जो हमें निराश कर रहा था, उसका कारण था अनेक क्रियाशील कारकों का अज्ञान / यह दिखाया गया है कि केवल उद्दीपना की तीव्रता और अवधि की भिन्नता द्वारा कितने स्पष्ट विपरीत परिणाम होते हैं / जीवन की यथार्थ दशाओं में अनेक दूसरे जटिल कारक उपस्थित हैं। इस प्रकार अनुक्रिया का चिह्न, उद्दीपना-बिन्दु, अंग के क्षतिज संचालन और पौधे की बल्य दशा द्वारा मन्द होता है। इन कारकों का विभिन्न मिश्रण ही परिणामी अनुक्रिया में अनेक विभिन्नताएँ लाता है / यही आरम्भ में इतना जटिल दिखता है। इस अध्याय में जो गतियाँ वणित हैं, वे एक पार्श्वगत उद्दीपना द्वारा प्रेरित हैं; फिर भी वनस्पति की गति-सम्बन्धी सभी घटनाएं यहीं समाप्त नहीं होती, क्योंकि दूसरी ऐसी घटनाएं हैं जो एक पार्श्व उद्दीपना द्वारा नहीं बल्कि पर्यावरण में व्याप्त उद्दीपना द्वारा प्रेरित होती हैं। इसका एक आश्चर्यजनक उदाहरण कुमुद पुष्प का सामयिक खुलना और बन्द होना है। इसका पूर्ण विवरण अगले अध्याय में दिया गया है।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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