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________________ प्रकृति में वनस्पति की गति 111 अब हम प्रत्यक्ष और परोक्ष उद्दीपनाओं के प्रभाव पर विचार करेंगे / लाजवन्ती में आशूनता की कमी पर्ण के गिरने से दृष्टिगोचर होती है और आशूनता की वृद्धि खड़े होने की गति से / चित्र 62 में पर्ण से युक्त लाजवन्ती के स्कन्ध का एक चित्र ६२--प्रत्यक्ष और परोक्ष उद्दीपना का प्रभाव / (a) बढ़ते हुए स्थान पर प्रत्यक्ष उद्दीपना द्वारा वृद्धि का विलम्बन __ संकुचन होता है, जैसा कि बिन्दु-रेखा से निरूपित है। इसमें और निम्न रेखाचित्र में उद्दीप्त स्थान छाया द्वारा निरूपित है। (b) परोक्ष उद्दीपना (बढ़ते हुए स्थान से कुछ दूर पर) वृद्धि को बढ़ाती और विस्तृत करती है। (c) दाहिने पार्श्व में उद्दीपना द्वारा संकुचन होता है / इस प्रकार उद्दीपना की ओर धन झुकाव होता है। (d) विपरीत पार्श्व में उत्तेजना के पारेषण द्वारा क्लीवन होता है। (e) तीव्र उद्दीपना से उत्तेजना का पारेषण उस पार होता है, और इस . प्रकार वह धन मोड़ को ऋण कर देता है, अर्थात उद्दीपना से दूर / आरेखीय दृश्य है। इसके नीचे चर पीनाधार है / यदि उद्दीपना, जैसे तीक्ष्ण प्रकाश, दाहिने हाथ की ओर दी जाय, पीनाधार प्रत्यक्ष रूप से उद्दीप्त होता है और पर्ण गिर जाता है। तब यदि उद्दीपना को चर पत्ते के बिलकुल विपरीत बिन्दु पर स्कंध के दूसरी ओर ले जाया जाय, अभिलेख पर्ण की खड़ी गति बतायेगा, जो दूरस्थ
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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