________________ 110 वनस्पतियों के स्वलेख. सकारात्मक वक्रता अब मैं अंग के एक पार्श्व की उद्दीपना द्वारा मोड़ या वक्रता के प्रश्न पर विचार करूँगा / हम एक वास्तविक उदाहरण लें और कल्पना करें कि तने के दाहिने पार्श्व को यान्त्रिक अथवा प्रकाश की उद्दीपना दी जाय / तने का दाहिना पार्श्व प्रत्यक्ष उद्दीपना पाता है और इसके परिणामस्वरूप यथार्थ अथवा प्रारम्भिक संकुचन स्थानीय होता है, दाहिने पार्श्व की स्वाभाविक वृद्धि-गति अब रुक जाती है। अब यदि बायें पार्श्व की वृद्धि स्वाभाविक होती है तो तना मुड़ जाता है; क्योंकि उद्दीप्त पार्श्व अवतल (Concave) होता है। अब तना उद्दीपना की ओर मुड़ जाता है और इस मोड़ को प्रायः सकारात्मक आवर्तन कहते हैं। अब मैं दिखाऊँगा कि वक्रता का एक दूसरा सहकारी कारक है। ऊपर वणित सकारात्मक आवर्तन के सम्बन्ध में हमने अंग के दाहिने पार्श्व पर, जो प्रत्यक्ष उद्दीप्त हुआ था, ध्यान केन्द्रित किया। उस बायें या दूरस्थ पार्श्व का क्या हुआ जिसकी उद्दीपना प्रत्यक्ष नहीं थी? क्या वह निष्क्रिय रहा या कोई परोक्ष प्रभाव उस पर पड़ा? यह परोक्ष प्रभाव, यदि कोई है भी, तो उद्दीपना की प्रत्यक्ष क्रिया द्वारा या तो वक्रता को बढ़ाने या घटाने में सहायता देगा। परोक्ष उद्दीपना के सम्बन्ध में अभी तक कुछ भी ज्ञात नहीं हुआ है। परोक्ष उद्दीपना का प्रभाव लम्बाई की स्वाभाविक वृद्धि पर परोक्ष उद्दीपना के प्रभाव के विषय में मैंने यह दिखाया है (चित्र 52) कि जब प्रत्यक्ष उद्दीपना द्वारा आशूनता घटती है और संकुचन होकर वृद्धि रुक जाती है, परोक्ष उद्दीपना द्वारा बिलकुल विपरीत-आशूनता की वृद्धि वाला-प्रभाव होता है और वृद्धि की गति विस्तृत होती है और बढ़ती है। इसका आरेखात्मक प्रदर्शन चित्र 62 a, b में है। प्रत्यक्ष उद्दीपना द्वारा संकुचन होता है और अंग सिकुड़ जाता है, जब कि परोक्ष उद्दीपना द्वारा विस्तृत और लम्ब हो जाता है। जब उद्दीपना, अंग के एक ही पार्श्व में काम करती है तब समानान्तर प्रभाव की आशा की जा सकती है / उद्दीपना द्वारा प्रेरित आशूनता का परिवर्तन ही सभी अनुक्रियात्मक गतियों का कारण है। मैंने एक चमत्कारी संपरीक्षण-युक्ति में सफलता पायी है / यह संपरीक्षण प्रत्यक्ष और परोक्ष उद्दीपना की विपरीत प्रतिक्रियाओं का प्रदर्शन करता है।