________________ वनस्पति में दिशा-बोध 105 जाती है, इसकी तीव्रता क्षीण होती जाती है। केन्द्र के बाहर और भीतर दोनों ही ओर अनुक्रियात्मक विद्युत्-परिवर्तन की तीव्रता कम हो जाती है / चित्र ५६--वैद्युत-शलाका द्वारा भम्या-प्रतिबोधी स्तर का स्थान-निर्धारण / आरेख, भूम्या-प्रतिबोधी स्तर के अनुत्तेजित उदग्र और उत्तेजित क्षैतिज स्थिति का निरूपण कर रहा है। इस प्रतिबोधन वाले स्तर में उद्दीपक परिवर्तनों का विभाजन और उनका अरीय दिशाओं में फैलना छाया द्वारा प्रशित है / सबसे अधिक घनी छाया स्वयं स्तर में ही है (चित्र 56 दाहिना चित्र)। यदि पौधे की उद्दीपना में प्रकाश के स्थान पर छाया रखी जाती; स्कंध को उदग्र से क्षतिज करने में हम प्रतिबोधी स्तर से निकल कर एक घनी छाया को कोशिका के विभिन्न स्तरों में फैलते हुए पाते, और फिर उसे उदन करने पर हम छाया को लुप्त होते पाते / - वैद्युत जाँच द्वारा प्रतिबोधी स्तर का पता लगाने के बाद मैंने तने का एक प्रभाग बनाया और देखा कि इस स्तर की कोशिकाओं में बड़े-बड़े मॉडे-कण थे जो अपने भार द्वारा उद्दीपना करने में समर्थ थे। इस प्रकार स्थितिकरण-सिद्धान्त को स्वतंत्र पुष्टि मिली। .. . झुकाव पर कणों का लुढ़कना - स्थितिकरण-सिद्धान्त की परीक्षा के लिए मैंने एक दूसरी निर्णायक संपरीक्षायुक्ति निकाली। तने का झुकाव उदग्र की ओर धीरे-धीरे बढ़ाया गया और तब झुकाव के एक चरम कोण पर भू-अभिवर्तनीय उद्दीपना की अकस्मात् विद्युत-अनुक्रि या हुई। यह इस तरह सोचने पर ज्यादा अच्छी तरह समझा जा सकता है / उदन दशा में कण प्रत्येक कोशिका के निम्न भाग में रहते हैं, जब वे कोशिका के एक पार्श्व में अकस्मात्