________________ 102 वनस्पतियों के स्वलेख प्रकाश की किरणों की तरह गुरुत्वाकर्षण की शक्ति को देख नहीं सकते ; द्वितीय, गुरुत्वाकर्षण की शक्ति एक विशेष संवेदांग द्वारा परोक्ष भाव से कार्य करती है। यह आगे स्पष्ट किया जायगा। हमारे सामने समस्या है उस कारण का निश्चयन, जिसके द्वारा गुरुत्वाकर्षणजनित उत्तेजना होती है और दूसरा उस संवेदांग का वास्तविक स्थान, जिसके द्वारा पौधा जब उदन से अलग रहता है तब प्रबोधन प्राप्त कर सकता है, जिससे वह अपनी गति का दिशानिर्देश कर फिर से खड़ा हो जाता है। भब हम उन दशाओं पर विचार करें जो अभिक्रिया को बढ़ाती या घटाती हैं। तापमान का प्रभाव उच्च तापमान, भू-अभिवर्तनीय (Geotropic) प्रतिक्रिया के लिए हानिकर है। मैं इसकी बाबत कलकत्ते की ग्रीष्म ऋतु(तापमान 18deg एफ०) की और दार्जिलिंग के पर्वतीय नगर की स्थिति को छोड़कर अन्य सभी दशाओं की समान परिस्थिति में लिये गये अभिलेखों को देखकर जान पाया / पर्वतों के शीतलतर जलवायु में गुरुत्वाकर्षण-सम्बन्धी किया कहीं अधिक स्पष्ट थी। वर्धित भू-अभिवर्तनीय न्यून तापमान में निम्न अभिक्रिया द्वारा प्रार्थना करने वाले ताड़ वृक्ष की गति का समाधान स्पष्ट हो गया (चित्र 32 देखिये) / यह याद रहे कि तापमान के मन्द होने पर झुका हुआ तना अपनी वर्धित भू-अभिवर्तनीय अभिक्रिया के कारण खड़ा हो जाता था, जब कि बढ़ते हुए तापमान द्वारा झुकने की विपरीत अभिक्रिया होती थी। __ ईथर का प्रभाव भ-अभिवर्तनीय अभिक्रिया ईथर-वाष्प की अल्प मात्रा द्वारा असाधारण रूप से बढ़ायी जा सकती है। मैंने सामान्य विकुसुम्भ (Tropaeolum majus) के दो समान पर्णवृन्त लिये और उन्हें एक घंटे तक भू-अभिवर्तनीय उद्दीपना में रखा / 'N' स्वाभाविक है, और दूसरा 'E' ईथरीकृत / चित्र 58 में ईथर द्वारा वर्धित प्रतिक्रिया वाले प्रादर्श के साथ स्वाभाविक प्रादर्श दिखाया गया है। जब कि स्वाभाविक प्रादर्श थोड़ा ही खड़ा हो पाया, दूसरे ने न केवल 60deg का वर्धन पूरा किया बल्कि उसके भी आगे पहुंच गया। चित्र 58 (अ) में अभिलेख द्वारा स्पष्ट होता है कि ईथर के प्रयोग से भू-अभिवर्तनीय अभिक्रिया की स्वाभाविक गति अत्यधिक बढ़ गयी। इसका प्रमाण मोड़ का