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________________ अध्याय 14 वनस्पति में दिशा-बोध संस्पर्श और प्रकाश, इन दोनों की बाह्य उद्दीपना से उत्पन्न होने वाली सक्रियता का पिछले अध्याय में वर्णन किया गया है। पौधे के अंग के बाह्य अधिस्तर या छिलके में थोड़ी जीवनी शक्ति होती है, इसी पर उद्दीपना का आघात होता है, इसीलिए. ऐसी विशेष युक्तियाँ आवश्यक हो जाती हैं जिनसे बाह्य उद्दीपना तीव्रतर हो और अधिक सक्रिय कोशिका-स्तरों तक उग्र रूप में पहुंच सके / ऐसे विभिन्न उपाय हैं जिनसे यांत्रिक उद्दीपना या प्रकाश-उद्दीपना जीवित कोशिकाओं को उद्दीप्त कर सकती है। जब हम अपने चर्म पर धीरे-धीरे हाथ फेरते हैं तब कुछ भी उद्दीपना नहीं होती, किन्तु यदि मांस में कांटा चुभ जाता है तो उसके द्वारा जो उन्नमन होता है, उससे अत्यधिक उत्तेजना होती है। स्पर्श की बाह्य उद्दीपना के प्रवर्धन के लिए हमारे पास स्पर्श-रोम और दृढ़ रोम हैं। लाजवन्ती में ऐसे रोम पीनाधार के निचले भाग में होते हैं और अपनी लीवर-क्रिया (Lever-action) द्वारा प्रेरक-ऊतक को उत्तेजित करते हैं / फिर बहुत से तन्तुओं (Tendrils) में स्पर्श-गर्त हैं जिनके द्वारा स्पर्श-उद्दीपना का प्रवर्धन होता है। प्रकाश के प्रतिबोधन के विषय में हैबरलेण्ट (Haberlandt) ने दिखाया है कि बहुत से पत्तों में ऐसी अधिस्तर कोशाएं लेंस के आकार (Lens-shaped) की होती हैं, जिससे आपाती प्रकाश जीवद्रव्य के स्तर पर केन्द्रित हो जाता है। इस प्रकार प्रकाश का प्रतिबोधन सरल हो जाता है। ... . . ऊपर प्रगणित उद्दीपनाओं में शक्ति होती है और वे पौधे पर प्रहार करती हैं। हम सहज ही इन उद्दीपनाओं की दिशा जान सकते हैं। किन्तु जब हम गुरुत्वाकर्षण की उद्दीपना के प्रभाव पर विचार करते हैं तब हमें अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है / यह स्मरण रहे कि जब पौधे का अंग उदग्र (Vertical) के अपने स्वाभाविक सम्बन्ध से पृथक् किया जाता है, तब उस अंग को केवल गुरुत्वाकर्षण ही उत्तेजित करता है। इसमें जो कठिनाइयाँ हमारे सामने आती हैं, वे हैं--प्रथम, हम
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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