________________ आहत वनस्पति प्रत्युत्तर की तीव्रता एकाएक बहुत तेजी से घटने लगी। जो पर्ण अभी तक खड़ा था अब गिर गया, मत्यु ने अन्ततः उस पर विजय पा ली। (2) चित्र 57--(1) मूल पौधे, और (2) पृथक की हुई शाखा पर व्रण का प्रभाव / (2) प्रथम अनुक्रिया स्वाभाविक। X वण के बाद पर्ण के संकोची पतन को दिखाता है। इसके बाद वाली अनुक्रियाएँ मन्द किन्तु सम्पूर्ण स्वास्थ्य-लाभ दिखाती हैं। (2) (a) काटने के तीन घंटे बाद पृथक किये हुए अंग की तीव्र अनुक्रिया, (b) चौबीस घंटे बाद अवनमन, (0) 48 घंटे बाद मृत्यु द्वारा अवनमन और अन्ततः नष्ट / इसी प्रकार की अभिक्रियाएँ अन्य पौधों और वृक्षों में भी होती हैं। आहत पौधा इस प्रकार विपत्ति का सामना कर लेता है। किन्तु स्वतन्त्र पर्ण वाली पथक् शाखा विभव में परिपोषित होकर भी मृत्यु का शिकार होती है। यह भिन्नता क्यों? इसका कारण यह है कि पौधा या वृक्ष अपनी ही मिट्टी में सुरक्षित स्थापित रहता है। इसका जन्म-स्थान ही इसे उचित पोषाहार देता है, और इसे