________________ 68 वनस्पतियों के स्वलेख दिया गया, और उसका कटा छोर पानी में रखा गया, तो उसका स्पन्दन इस क्रिया के आघात से रुक गया। शनैःशनैः व्रण के आघात का प्रभाव समाप्त हो गया और स्पन्दन पुनरुज्जीवित होकर चौबीस घंटे तक चलता रहा। फिर भी, मृत्यु को व्रण का अरक्षित स्थान मिल गया और उसकी गति यद्यपि मन्द थी, किन्तु थी निश्चित / मृत्यु-परिवर्तन अन्ततः स्पन्दित अंग के पास पहुँच गया, जो फिर सदा के लिए शान्त हो गया। मृत्यु की इस गति को रोकने के लिए संपरीक्षण किये गये हैं / इस समस्या से दो चीजों का निकट सम्बन्ध है--पहला, जीवन की पृष्ठभूमि में स्थित प्रावस्थाओं को पूर्ण रूप से समझना / दूसरा है, मृत्यु-शिथिलता से अन्तर्गत आणविक-चक्र (Molecular Cogwheel) का रुकना / अब तक जो संपरीक्षण हुए हैं, वे उचित ग्यवहार द्वारा पौधे के स्पन्दन को एक सप्ताह से अधिक तक जीवित रखते हैं। प्रेरक का स्तम्भन (Motor Paralysis) तीव्र आघात से लाजवन्ती के पीनाधार का प्रेरक प्रकार्य स्तम्भित हो जाता है / एक छोटे से तने को, जिस पर एक पत्ती थी, काट देने पर आघात का प्रभाव मूल पौधे के प्रत्येक अंग में फैल गया। सब पत्ते झड़ गये और काफी लम्बे समय के लिए वह अवसादित दशा में पड़ा रहा। पृथक् किया हुआ भाग भी, जिसका कटा छोर पोषक घोल में रखा गया था, अवसादित दशा में था, जैसा कि उसके पत्ते के झड़ने से पता चलता है। किन्तु अनुवर्ती इतिहास मूल-पौधे और उसके पृथक् किये मये भाग की भिन्नता का स्पष्ट प्रदर्शन करता है। आघात द्वारा स्तम्भित मल पौधे का पुनर्जीवन मन्द हआ। उसके एक पर्ण का अभिलेख लिया गया। चित्र 57 (1) वाला पहला लेख आघात के पहले लिया गया पर्ण का प्रत्युत्तर है / तीव्र आघात के पश्चात् पर्ण झड़ गया। यह उस दशा में गिरा जो अभिलेख में एक क्रास (x) द्वारा चिह्नित है। परीक्षण-आघात द्वारा, आघात के प्रभाव को प्रमाणित किया गया। प्रत्येक बार स्वतः अभिलेख द्वारा प्रत्युत्तर मिला। प्रायः 2 घंटे तक उत्तेजना निम्न रही, इसके पश्चात् पौधे में स्वाभाविक उत्तेजना सोपानात्मक रूप में पुनरुज्जीवित हुई। पौधे का स्वाभाविक कार्यक्रम पुनः पूरी तरह चलने लगा। __ पृथक की हुई शाखा के पर्ण को पोषक घोल का भोजन कराया गया तब वह जल्दी ही मानों लगभग एक प्रकार के विद्रोह में उठ खड़ा हुआ। मातृ-पौधे से उन्मुक्त होने की अपनी नवीन स्थिति में वह असाधारण शक्ति से प्रत्युत्तर देने लगा। यह तीव्रता सारे दिन बनी रही, जिसके बाद एक विस्मयकारी परिवर्तन हुआ / इसके