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________________ वनस्पतियों क स्वलेख है। "क्वीन एलिजाबेथ" की पन्द्रह इंच की तोप एक गाले को, नालमुख-प्रवेग द्वारा प्रति सेकेण्ड 2360 फुट फेंकती है। किन्तु वृद्धिलेखी द्वारा वर्धित घोंघे की गति तोप के गोले से 24 गुनी होगी। अब हम निकटतर समता के लिए ब्रह्माण्ड-गतियों की ओर मुड़ें / भूमध्य रेखा पर एक बिन्दु 1037 मील प्रति घंटे की गति से घूमता रहता है। किन्तु वृद्धिलेखी द्वारा परिवधित घोंघा मन्दगति पृथ्वी को स्पष्टतः नीचा दिखा सकता है, क्योंकि जब तक पृथ्वी एक बार घूमती है, घोंघा प्रायः चालीस बार घूम जायगा। कायाकल्प ऐसा कोई और दूसरा यन्त्र समझ में नहीं आता जो पौधे के जीवन की अदृश्य गतियों का ऐसा ही स्पष्ट विवरण दे, जैसा यह चुम्बकीय यन्त्र देता है। प्रौढ़ावस्था में पौधे के बहुत-से अंगों की वृद्धि को मैंने समाप्त होते पाया। ऐसी घटनाओं में जहाँ वृद्धि स्वाभाविक रूप से समाप्त हो गयी, मैंने देखा कि उसे फिर से उचित उद्दीपनाओं द्वारा सक्रिय बनाना सम्भव हो सका। जैसे भी हो, यह कायाकल्प के सतत प्रत्यावर्ती स्वप्न को कुछ पुष्ट करता है। हमारा अपना अनुभव भी यही बताता है कि जहां आशा की उमंग और सतत आशावाद से हम सदा युवा बने रहते हैं, वहीं निराशावाद और उदासीनता से असमय में ही वृद्धावस्था और क्षय का सूत्रपात होता है। निष्क्रिय अवस्था में जीवन चुम्बकीय वृद्धिलेखी विशाल जनसमूह के समक्ष वृद्धि के प्रदर्शन के लिए उल्लेखनीय रूप से उपयुक्त है। वृद्धि के प्रदर्शन के लिए संपरीक्षण की कोई भी दशा इतनी दुरुह नहीं हो सकती, जितना आंग्ल शीतकाल का मध्य, जब वनस्पति शीत निद्रा (Hibernation) की अवस्था में थी। ऐसा होते हुए भी उसको आलस्य छोड़ने को बाध्य किया गया और इसके परिणामस्वरूप वृद्धि की गति का प्रदर्शन बारह सेकेण्ड की अवधि में एक 10 फुट लम्बी तुला पर दौड़ते हुए प्रकाश की रेखा द्वारा हुआ। वास्तविक गति प्रति इंच प्रति सेकेण्ड का सौ हजारवाँ अंश थी। ___ इससे भी अधिक विस्मयकारी संपरीक्षणों का, जैसे भेषजों की क्रिया द्वारा वृद्धि की घट-बढ़ का सहज ही प्रदर्शन किया जा सकता है। पौधे की स्वाभाविक दशाओं में वृद्धि का प्रवर्धन तुला पर भागती हुई प्रकाश-रेखा द्वारा हुआ। निम्नन अभिकारक द्वारा वृद्धि रुक जाती है और प्रकाश की रेखा स्थगित हो जाती है। किन्तु उद्दीपना की एक मात्रा द्वारा तत्काल ही पुनः क्रियाशील हो जाती है।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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