________________ 2 वनस्पतियों के स्वलेख बेतार-तरंगों की क्रिया की वृद्धि में सम्भावित परिवर्तन का अभिलेख लेने के लिए संतुलित वृद्धि लेखी काम में लाया गया। मेरे संपरीक्षणों के परिणामों से ज्ञात हुआ कि बेतार-तरंगों द्वारा वृद्धि में लाक्षणिक विभिन्नताएँ हुई / ये विभिन्नताएँ उद्दीपना की तीव्रता पर निर्भर थीं। क्षीण तरंगों द्वारा वृद्धि की गति में त्वरण हुआ। अति तीक्ष्ण तरंगों द्वारा वृद्धि रुक गयी और उनका प्रभाव उद्दीपना के समाप्त होने के बहुत देर बाद भी बना रहा। मध्य तीव्रता की उद्दीपना-तरंगों द्वारा वृद्धि रुकने के बाद बहुत ही जल्दी पुनः स्वस्थता प्राप्त हो गयी (चित्र 55) / वनस्पति की प्रतिबोधन-सीमा हमारी प्रतिबोधन-सीमा से कहीं अधिक है; इतनी कि हम सोच भी नहीं सकते / यह केवल प्रतिबोधन ही नहीं करती बल्कि विस्तृत ईथरीय स्पेक्ट्रम की विभिन्न किरणों का प्रत्युत्तर भी देती है। कदाचित् अच्छा ही है कि हमारी इन्द्रियों का परिक्षेत्र सीमित है। अन्यथा इन अन्तरिक्ष संकेतक तरंगों से, जिनके लिए ईट की दीवारें बिलकुल पारदर्शी हैं, उत्पन्न सतत क्षोभ से जीवन असह्य हो जाता। संमुद्रित धातु-गृह (Hermetically scaled metal chambers) ही केवल हमारी रक्षा कर सकते। चुम्बकीय प्रवर्धन दस हजार गुना प्रवर्धन करने वाले उच्च प्रवर्धक वृद्धिलेखी ने संतुलन-प्रणाली के सहयोग से ऐसे परिणाम प्रस्तुत किये जो आशातीत थे / इससे हमें संतुष्ट हो जाना चाहिये था, किन्तु मनुष्य को कभी संतोष नहीं होता / अपनी पूर्व सफलताओं को पराभूत करने की उसकी अतृप्त आकांक्षा ही उसकी प्रगति की पृष्ठभूमि में निहित वास्तविक प्रेरणा है। मैं भी एक उत्कृष्टतर वृद्धिलेखी के आविष्कार में संलग्न हुआ। दो उत्तोलकों का प्रयोग करके यदि मैं सौ से दस हजार गुनी प्रवर्धन-शक्ति बढ़ाने में सफल हुआ, तो एक तीसरे उत्तोलक के प्रयोग से उसी अनुपात में वृद्धि हो सकती थी। किन्तु यह प्रयास पूर्णतः असफल रहा। भार, और उसके कारण उत्पन्न दोनो उत्तोलकों को जोड़ने वाले योग-बिन्दुओं पर संघर्ष अत्यधिक बढ़ गया और सैद्धान्तिक सुविधा व्यवहार में पूर्णतः असफल हो गयी। अब मुझे एक नया समाधान निकालने के लिए बाध्य होना पड़ा। धातविक सम्पर्क व्यवहार्य न होने के कारण मुझे एक ऐसी नयी सम्पर्क-प्रणाली का आविष्कार करना पड़ा जो धातुहीन हो ताकि संघर्षरहित रहे / यह बात चुम्बकीय प्रकल्पना (युक्ति) में पायी गयी। इसमें एक सूक्ष्मता से संतुलित प्रणाली, पास के चुम्बकीय उत्तोलक की गति द्वारा अस्थिर होती है / यह चित्र 56 द्वारा समझा जा सकता है / SN एक हल्की चुम्बकीय शलाका है जो एक आलम्ब पर अवलम्बित रहती है। उत्तोलक का छोटा बाहु, बढ़ते