________________ वृद्धि का अभिलेख 87 असंगति का कारण यह है कि भिन्न व्यक्तियों का बल्य-प्रतिमान (Tonic level) या शरीर-रचना समान नहीं होती। युक्तियुक्त चिकित्सा के लिए रोगी की शरीररचना को महत्त्व देना आवश्यक है क्योंकि दिये हुए भेषज की प्रतिक्रिया उसकी बल्य स्थिति (Tonic condition) द्वारा अत्यधिक प्रभावित होती है। वनस्पति पर संपरीक्षण करते समय मैंने समान बीजांकुरों के समूहों के बल्य या शरीर-रचना को कृत्रिम साधनों द्वारा रूपान्तरित किया। संदर्भ के लिए एक को स्वाभाविक रखा गया, दूसरे को उप-बल्य दशा में और तीसरे को अत्यधिक बल्य की अनुकूलतम अवस्था में / विषघोल की नपी हुई मात्रा तीनों वनस्पति समूहों को दी गयी / स्वाभाविक पौधे कुछ देर के संघर्ष के बाद स्वस्थ हो गये। जो दुर्बल थे, वे बिना संघर्ष के ही मृत हो गये। किन्तु बलशाली प्रादर्शों की प्रतिक्रिया सर्वथा भिन्न थी; विषालु कारक न केवल अपने अवैध कार्य में असफल रहा, बल्कि उसने वृद्धि को अत्यधिक बढ़ा दिया। यह देखा जायगा कि वृद्धि को रूपान्तरित करने वाले कारक बहुत अधिक हैं। केवल इन अलग-अलग कारकों के प्रभाव के अध्ययन से ही हम आरम्भ में असंभव जान पड़ने वाली कठिनाइयों को सुलझा सकेंगे। वृद्धि-गति के दस हजार गुना आवर्धन द्वारा सम्भव संपरीक्षण के समय को घटाकर ही हम अब तक की कल्पनातीत वृद्धि के लक्षणों को खोज पायें हैं। मुझे आशा थी कि मैं वृद्धि की गति का न्यूनतम भिन्नताओं द्वारा प्रदर्शित और भी सूक्ष्म प्रतिक्रियाओं को ज्ञात कर सकूँगा किन्तु ऐसे प्रभाव तभी मिल सकते थे जब जानकारी प्राप्त करने की विधि की संवेदनशीलता को और भी बढ़ाया जाता।