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________________ 86 वनस्पतियों के स्वलेख उद्दीपना का स्थान उद्दीपना का प्रभाव न केवल घनता बल्कि आघात के स्थान द्वारा भी रूपान्तरित होता है / वृद्धि और उससे सम्बन्धित सब रूपान्तरण एक सीमित स्थान में होते हैं। यह स्थान बढ़ते हुए अंग के छोर के तनिक पीछे होता है। उद्दीपना सीधे बढ़ते हुए स्थान पर देने का परिणाम होता है-वृद्धि का स्थगित होना / जब उद्दीपना तीक्ष्ण होती है तब वास्तविक संकुचन होकर अंग घटता है। किन्तु वृद्धि के अनुक्रियाशील स्थान से कुछ दूर पर उद्दीपना देने से पूर्णतः अप्रत्याशित परिणाम होता है। इस प्रकार परोक्ष उद्दीपना देने से वृद्धि सचमुच बढ़ जाती है। यह चिन्न 52 के अभिलेख में दिखाया गया है। मोड़ के पहले हिस्से का ऊपरी झुकाव स्वाभाविक वृद्धि चित्र २-वद्धि पर परोक्ष और प्रत्यक्ष उद्दीपना का प्रभाव / बिन्दु-चित्रित तौर पर परोक्ष उद्दीपना गति को बढ़ाती है / गुणक चिह्न पर प्रत्यक्ष उद्दीपना द्वारा संकुचन से विपरीत अनुक्रिया होती है। बताता है। तीर से अंकित स्थान पर परोक्ष उद्दीपना देने से मोड़ अकस्मात् सीधा हो गया / यह वृद्धि की गति का बढ़ना सिद्ध करता है। पश्चात् क्रास द्वारा चिह्नित स्थान पर उद्दीपना दी गयो / परिणाम यह हुआ कि वृद्धि रुक गयी और अंग ने स्पष्ट संकुचन प्रदर्शित किया, जैसा उलटी हुई मोड़ से पता चल रहा है (चित्र 62) / प्रत्यक्ष और परोक्ष उद्दीपना के प्रभाव का नियम है--प्रत्यक्ष उद्दीपना संकुचन करती है; परोक्ष उद्दीपना इसके विपरीत विस्तार करती है। बल्य स्थिति का आपरिवर्ती प्रभाव भेषज-वृत्ति में प्राय: ही यह असंगति देखने में आती है कि एक ही भेषज का दो भिन्न-भिन्न व्यक्तियों पर प्रभाव एकदम एक-दूसरे के विपरीत होता है। इस
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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