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________________ वृद्धि का अभिलेख पड़ने जैसा संकुचन होता है जिसका उलटा प्रभाव होता है / वक्रशीर्ष (Apex of the curve) जीवन और मृत्यु का विभाजन करता है / इसके उत्क्रमण (Reversal) के बाद पौधे में विवर्णता के धब्बे उठ आते हैं / ये बहुत ही शीघ्र फैल जाते हैं और प्रादर्श, मृत्यु के कारण शिथिल हो जाता है। ईथर की क्रिया पर परीक्षण से यह स्पष्ट हो जाता है कि मन्द उद्दीपना द्वारा सुषुप्त वृद्धि को पुनर्जीवित करना सम्भव है। रासायनिक उद्दीपकों का प्रभाव . वैज्ञानिक कृषि में कोई भी निश्चयात्मक उन्नति तभी सम्भव है जब हम वृद्धि के अत्यधिक बढ़ाने वाले कारकों को खोज निकालने में सफल हो जायें / इसके लिए केवल थोड़े-से उद्दीपनात्मक कारकों को काम में लाया गया है जबकि बहुत-से ऐसे कारक हैं जिनकी क्रिया से हम बिलकुल ही अनभिज्ञ हैं। अब तक जो कुछ थोड़े-से नियम रासायनिक उद्दीपकों और विद्युत् उद्दीपना के सम्बन्ध में व्यवहार किये गये हैं, वे भी समान रूप से सफल नहीं रहे हैं / इस असंगति का कारण एक आवश्यक कारक के प्रकाश में आने पर स्पष्ट हुआ। वह है, मात्रा का परिमाण जो अभी तक अविचारित रहा। अब हम देखते हैं कि जब विद्युत्प्रवाह की एक विशेष घनता वृद्धि को बढ़ाती है तब एक पराकाष्ठा विशेष के बिंदु से आगे बढ़ने पर उसको रोक देती है। यही बात रासायनिक उद्दीपकों के बारे में भी लागू होती है। कुछ विषों का परिणाम विस्मयकारी हुआ। सामान्य मात्रा में विष पौधे को मार डालता है, किंतु अत्यधिक कम मात्रा में वृद्धि की गति को बढ़ाने में असाधारण समर्थ उद्दीपन का कार्य करता है / यथार्थ में इस विषय में वनस्पति भी मनुष्य की तरह व्यवहार करता है। इस प्रकार वनस्पति पर खोज करने से भैषज्यविज्ञान और औषध-प्रभाव-विज्ञान के शोध का एक नया मार्ग निकल आया है। उच्च आवर्धन वृद्धिलेखी ने 'खाद'-सम्बन्धी कारकों की क्रिया की सत्वर परीक्षा सम्भव कर दी है। यह परीक्षण, पूरा करने के लिए पूरी ऋतु की जगह केवल कुछ मिनट ही लेता है। इससे दीर्घ संपरीक्षण में बदलती हुई दशाओं के कारण होने वाली गलतियां नहीं होती। वृद्धि न केवल भौतिक या रासायनिक उद्दीपना की घनता द्वारा अपरिवर्तित होती है, बल्कि आघात के स्थान और वनस्पति के बल्य की दशा द्वारा भी रूपान्तरित होती है।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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