________________ वृद्धि का अभिलेख 8 क्रिया होती है, वह प्राकृतिक वृद्धि-दीर्घण के विपरीत है। यह सहज ही आरम्भिक संकुचन कहा जा सकता है। कारण, उद्दीपना की बढ़ती हुई उग्रता में यह सचमुच ही संकुचित हो जाता है। इस परीक्षण के दौरान, एक विस्मयकारी परिणाम पाया गया। वह है-अल्प उग्रता की उद्दीपना वृद्धि को रोकती है जब कि क्षीण उद्दीपना वृद्धि में सहायक होती है। इस प्रकार प्रबल और मन्द उद्दीपनाओं द्वारा दो ठीक विपरीत प्रभाव होते हैं। हम इस सिद्धांत का विस्तृत उपयोग औषधों की क्रिया-विधि में पायेंगे जिन्हें 'रासायनिक उद्दीपक' कहा जा सकता है। ____ पीनाधारी और बढ़ते हुए अंगों की प्रतिक्रिया का सादृश्य मैंने यह प्रदर्शित किया है कि यथेष्ट प्रबल उद्दीपना द्वारा वृद्धि-दीर्घण वास्तविक संकोच में बदल जाता है। कुछ विश्राम के बाद वृद्धि पुनः सक्रिय हो जाती है। चित्र 50 में दिखायी गयी प्रतिक्रिया का अभिलेख वास्तव में पीनाधारी अंग की प्रतिक्रिया और स्वस्थता के अभिलेख के समान ही है / भिन्नता केवल मात्रा की है। एक भ्रान्तिपूर्ण धारणा प्रचलित है कि भिन्न प्रकार की उद्दीपनाओं द्वारा भिन्न प्रतिक्रियाएँ होती हैं। मेरे अनुसन्धानों द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि ऐसा नहीं है। एक ही घनता की सब प्रकार की प्रभावी उद्दीपनाओं।। / / / / / / / / / / स्पर्श-विद्युत् आघात या प्रकाश द्वारा समान चित्र ५०--विद्युत् आघात द्वारा अनुक्रियात्मक संकुचन होता है। बढ़ते हुए अंग की आकुंचनयुक्त अनु. जैसा हमने देखा है, बढ़ते हुए अंग, क्रिया। 4" के अन्तराल पर क्रमिक प्रस्त (Diffuse) उद्दीपना द्वारा अपने चारों बिन्दु / नीचे की उदन रेखाएँ ओर बराबर संकुचन करते हैं और इसी १मिनट का अन्तराल बताती हैं कारण वे छोटे होते हुए दिखाई पड़ते (1,000 गुना प्रवर्धन)। हैं / किन्तु एक अंग के एक पार्श्व में यदि स्थानीय उद्दीपना का प्रयोग हो तो उसी तरफ संकुचन होगा और अंग एक ओर को मुड़ जायगा। इसका विस्तृत वर्णन आगे के अध्याय में दिया जायगा।